जानिए- बिहार के एक मजदूर ने ऐसा क्या कहा कि दिल्ली के अफसर की आंखों में आ गए आंसू

नई दिल्ली [शुजाउद्दीन]। ‘साहब मेरे पास न तो बड़ी गाड़ी है न ही साइकिल… मेरे आठ माह के फूल जैसे बच्चे ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। वो बच्चा जिसके लिए मैंने बिहार के बड़े से बड़े मंदिर में जा-जाकर माथा टेका, आठ वर्ष तक भगवान से प्रार्थना की तब जाकर मुझे एक बेटा नसीब हुआ। उसकी मौत हुए तीन दिन हो चुके हैं, मेरे पास दौलत नहीं है जो आपकों दे दूं और आप मुझे बिहार पहुंचा दो। मैं एक बदनसीब पिता हूं, जो आखिरी वक्त में अपने बच्चें के चेहरे को भी नहीं देख सका। मुझे पैदल ही बिहार जाने दो, ताकि मैं इस मुश्किल वक्त में अपनी पत्नी से कह सकूं घबरा नहीं एक सच्चे साथी की तरह मैं तेरे साथ खड़ा हूं।’

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बिहार के एक मजदूर का ऐसा दर्द जब प्रशासन के अधिकारियों ने सुना तो उनकी आंखों से भी आंसू निकल पड़े। पूर्वी जिले के जिलाधिकारी अरुण कुमार मिश्रा को जब मजदूर की स्थिति का पता चला तो उन्होंने तुरंत उसकी स्क्रीनिंग करवाई और बुधवार को नई दिल्ली से बिहार जाने वाले विशेष ट्रेन में मजदूर के लिए सीट का इंतजाम किया। एसडीएम संदीप दत्ता ने मजदूर को स्टेशन तक पहुंंचाया और उनके लिए खाने पीने की व्यवस्था की।

बिहार के बेगूसराय के रहने वाले राम पुकार ने बताया कि वह दिल्ली के नजफगढ़ इलाके में मजदूरी करते हैं।उनकी पत्नी व दो बेटियां बिहार में रहती हैं। आठ महीने पहले उनकी पत्नी ने बेटे को जन्म दिया था, कोरोना की वजह से लॉकडाउन लगा हुआ है। बच्चे की तबियत खराब थी, पत्नी डॉक्टर को नहीं दिखा सकी। तीन दिन पहले बच्चे ने दम तोड़ दिया। वह आर्थिक रूप से कमजाेर हैं, बिहार जाने के लिए कोई साधन नहीं था। वह बिहार जाने के लिए पैदल ही निकल पड़े, दिल्ली-यूपी गेट पर पुलिस ने रोक लिया। दो दिन तक भूखे-प्यासे सड़क पर रहे, उन्होंने अपनी परेशानी एक पुलिसकर्मी को बताई, उन्होंने जिलाधिकारी से संपर्क करवाया।

उन्होंने जिलाधिकारी से कहा साहब आपको भगवान का वास्ता, मेरा बेटा मर गया है मुझे बिहार भेज दो। उनका दिल पिघला और बिहार जाने की व्यवस्था करवाई। तीन दिन से सड़कों पर बिहार जाने के लिए ठोकरें खा रहे हैं। एक पिता कभी अपने दर्द को दूसरों को नहीं बता पाता, लेकिन होता तो वह भी इंसान ही है। जो बच्चा आठ वर्ष बाद हुआ, उसे भी देख न सके।