सुकमा

नक्सली गतिविधियों के कारण 16 सालों से बंद पड़े हेचरी का किया जाएगा पुनः संचालन…

दुब्बाटोटा में फिर प्रारंभ होगा मछली बीज का उत्पादन,मत्स्य पालन में आत्मनिर्भर होगा सुकमा

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सुकमा, 02 सितम्बर 2021/ दशकों से नक्सलवाद का दंश झेल रहे सुकमावासी अब फिर से शांति और विकास की राह पर आगे बढ़ रहे हैं। इस बात का जीता-जागता उदाहरण कोंटा मार्ग में बसा गांव दुब्बा टोटा है, जहां अब शांति की स्थापना के साथ ही विकास कार्यों में भी गति दिखाई दे रही है।

अपनी उन्मुक्त आदिवासी शैली के लिए पहचाने जाने वाले इस क्षेत्र में नक्सलियों द्वारा लेवी वसूली और आदिवासियों की हत्या के विरोध में शुरु हुए सलवा जुडूम आंदोलन के बाद बढ़ी नक्सलियों की क्रूरता का शिकार राष्ट्रीय राजमार्ग मंे बसा यह दुब्बाटोटा गांव भी हुआ था और यह गांव भी शांति और विकास से कोसों दूर पीछे चला गया था। यहां फैली अशांति के कारण ही दुब्बाटोटा में मछलीपालन विभाग द्वारा संचालित हेचरी को भी बंद करने की नौबत आ पड़ी थी। इससे यहां के ग्रामीणों की रोजी-रोटी पर भी बुरी तरह से प्रभाव पड़ा था।

शासन-प्रशासन के प्रयास से एक बार फिर से यहाँ के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव तेज हो रहा हैं। कलेक्टर विनीत नंदनवार ने कुछ समय पहले गाँव का दौरा किया था और ग्रामीणों के पास बैठकर उनसे विस्तार से चर्चा करके जानकारी ली थी । ग्रामीणों ने चर्चा के दौरान यहां संचालित हेचरी के संबंध में उन्हें बताया कि किस तरह पहले यहाँ मछली बीज का उत्पादन होता था और इससे इन्हें अच्छी खासी आमदनी होती थी ।

कलेक्टर ने पुनः मत्स्य हैचरी को प्रारंभ करने का वादा किया और उसके बाद से ही इस हेचरी के पुनः संचालन की दिशा में तेजी से कार्य किया जा रहा है।

ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति होगी मजबूत

डुब्बाटोटा में मत्स्य हेचरी शुरू होने पर मछली बीज के लिए यहां के मछलीपालक किसानों की दूसरे राज्यों में निर्भरता खत्म होगी। मछली बीज की स्थानीय उपलब्धता की सहुलियत मिलने पर यहां के दूसरे किसानों को भी मछलीपालन के लिए प्रेरित होंगे। मछलीपालन को बढ़ावा मिलने पर निश्चित तौर पर यहां के किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा और जिले की अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक प्रभाव दिखाई देगा।

दूसरे राज्यों पर रहती थी निर्भरता

मछली उतपादन हेतु बीज के लिए सीमावर्ती राज्य ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलांगना पर निर्भर रहना पड़ता था और अधिक दर पर यह उपलब्ध हो पाता था । लेकिन डुब्बाटोटा में हेचरी प्रारंभ होने पर यह आसानी से उचित दाम पर उपलब्ध हो जाएगा और दूसरे राज्यों पर निर्भरता खत्म हो जाएगी। वहीं हेचरी के माध्यम से स्थानीय युवाओं को भी रोजगार प्राप्त होगा।

3.61 हेक्टेयर प्रक्षेत्र में 1 करोड़ 92 लाख की लागत से हो रहा जीर्णाेधार

जिले में 1990 के आसपास दुब्बाटोटा में निर्मित मत्स्य बीज प्रक्षेत्र में मत्स्य उत्पादन, मत्स्य बीज उत्पादन का कार्य प्रारंभ था। अंदरूनी गांव होने के कारण सलवा जुडूम का प्रभाव दुब्बाटोटा पर भी रहा और मत्स्य प्रसंस्करण का कार्य बंद करना पड़ा। तब से यह प्रसंस्करण केंद्र निष्क्रिय रहा। आदिवासी अंचलों का विकास और उनके निवासियों को आर्थिक संवर्धन प्रदान करना शासन की प्राथमिकता है, और इसी का नतीजा है की इतने लंबे समय से बंद पड़े मत्स्य बीज प्रक्षेत्र का जीर्णाेधार किया जा रहा हैं। ग्राम दुब्बाटोटा में 3.61 हेक्टेयर में फैले प्रक्षेत्र पर 1 करोड़ 92 लाख की लागत से नव निर्माण एवं जीर्णाेधार का कार्य किया जा रहा है, जिसमे 13 नर्सरी एवं 3 ब्रीडर तालाब का कार्य पूर्ण किया जा चुका है। प्रक्षेत्र में पाइपलाइन विस्तार, विद्युतीकरण, सर्कुलर हैचरी, गोदाम, पैकिंग शेड, बाउंड्रीवॉल सहित अन्य निर्माण कार्य प्रगतिरत है।

वहीं डुब्बाटोटा में मत्स्य हेचरी का पुनः निर्माण शुरू होने से यहां के ग्रामीणों में खुशी है। गाँव के बुजुर्गों का कहना है कि पुराने दिन वापिस लौट रहे हैं ऐसा महसूस हो रहा है। वह तश्वीर आज भी मन मे आती हैं जब यहां के मछली बीज दूसरे इलाकों में पहुँचते थे, अच्छी आमदनी उन्हें होती थी । फिर सब कुछ बदल गया और यहां का मछली बीज का व्यापार बन्द हो गया। उनमें से किसी को भी यह विश्वास नहीं था कि यह सब कुछ वापिस से लौटकर आएगा लेकिन अब उन्हें बेहद खुशी है कि पुराने अच्छे दिन लौटकर आ रहे हैं।

Lokesh Rajak

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