नर्सिंग डे पर विशेष- क्या कहती है राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज की नर्सेस..

पत्रकार भोला की रिपोर्ट –

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राजनांदगांव। कोरोना वायरस के संक्रमण से लोगों को बचाने जारी जंग में सबसे अहम भूमिका अदा कर रहीं हैं तो वे हैं नर्सेस। ये कोरोना के खिलाफ योद्धा के रूप में लड़ाई लड़ रहीं हैं। दिनभर संक्रमण के खतरों के बीच ये अपनी सेवाएं दे रहीं हैं। नर्सेस का कहना है कि यह समय एकजुटता के साथ कोरोना से संघर्ष करने का है। इसलिए अपनी तकलीफों को भूलकर लोगों की सेवा पर जोर दे रहीं हैं। कहती हैं कि अगर हम घबरा जाएंगे तो फिर दूसरों का क्या होगा। इसलिए संकट काल में कंधे से कंधा मिलाकर दूसरों का दुख दूर करने में जुटी हैं। भले ही इन्हें रिस्क भत्ता न मिले पर रिस्क उठाने में ये पीछे नहीं। 

अंजली गायकवाड़ नर्स का कहना है कि उन्होंने यह फील्ड इसलिए चुना ताकि लोगों की सेवा कर सकें। इनका कहना है कि मरीजों की सेवा ही ईश्वर की सेवा है। अंजली ने बताया कि सरकार ने हमें जोखिम भत्ता नहीं दिया जाता पर जोखिम उठाने से पीछे नहीं हटती हैं, क्योंकि नर्सेस पीछे होंगी तो अस्पताल को कौन संभालेगा। बताया कि जब डॉक्टर नहीं रहते तो लोग नर्सों पर ही भरोसा करते हैं।

नर्स जीतकुंवर साहू का कहना है कि ईश्वर ने हमें लोगों की सेवा के लिए ही चुना है। इसलिए हर मुश्किल घड़ी में ईश्वर को याद कर मरीजों की सेवा में जुट जाती हंू। कहा कि कोरोना वायरस से डरने की जरूरत नहीं है बल्कि सबको मिलकर इसका मुकाबला करना चाहिए। जीत ने बताया कि पहले भी कई महामारी के केस आए हंैं और ऐसे बुरे वक्त से मुकाबला भी किया है। 

मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल की सीनियर नर्स सुभाषिनी मार्टिन 22 साल से चिकित्सा क्षेत्र में सेवा दे रहीं हैं। सुभाषिनी ने बताया कि बीमारी के कई तरह के केसेस देखे हैं और इन मरीजों की सेवा भी की है। बताया कि पहले ऐसा दौर भी था जब अस्पताल में संसाधनों की कमी थी। यानी की हैंड ग्लब्स, मास्क तक की कमी रहती थी फिर भी गंभीर मरीजों की देखरेख में पीछे नहीं हटते थे। दरअसल सेवा की इच्छा से ही इस प्रोफेशन में आई हैं। बताया कि जब कोई मरीज स्वस्थ होकर लौटता है तब बड़ा सुकून मिलता है। 


नर्स माया कुंजाम भी 22 सालों से इस सेवा के क्षेत्र से जुड़ी हैं। कहती हैं कि अस्पताल में रोज नई समस्याओं से जूझना पड़ता है। एक नर्स को 30 से 35 मरीजों की देखरेख करनी पड़ती है। बताया कि कई बार परिजन मरीज को भर्ती करने के बाद छोड़कर चले जाते हैं। ऐसे मरीजों की भी सेवा की है और स्वस्थ्य होकर घर लौटते देखा है। ये कहती हैं कि हर मरीज परिवार की सदस्य की तरह है। इस ध्येय से अब तक सेवा करती आ रहीं हैं। 

Lokesh Rajak

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