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इस 23 सितंबर, 2020 को संसद ने तीन श्रम संहिताएं (लेबर कोड्स) पारित कीं हैं, जिनका उद्देश्य ऐतिहासिक “गेम चेंजर” श्रम कानूनों के क्रियान्वयन का मार्ग प्रशस्त करना था. राज्यसभा द्वारा सदन से आठ सांसदों के निलंबन को लेकर विपक्षी नेताओं द्वारा बहिष्कार के दौरान ही राज्यसभा द्वारा ध्वनि मत के माध्यम से अपनी स्वीकृति देने के बाद यह श्रम सहिंता पारित की गई. लोकसभा ने 22 सितंबर को यह विधेयक पारित किया था.

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केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने इन तीन श्रम सुधार बिलों पर बहस का जवाब देते हुए यह कहा कि, इन श्रम सुधारों का उद्देश्य बदलते हुए कारोबारी माहौल के अनुकूल एक पारदर्शी व्यवस्था प्रदान करना है. उन्होंने इन तीनों विधेयकों को एक ऐतिहासिक गेम-चेंजर के रूप में वर्णित किया जो श्रमिकों, उद्योगों और अन्य संबंधित पक्षों की आवश्यकताओं में सामंजस्य स्थापित करेगा.

मंत्रीजी ने आगे यह भी कहा कि, ये श्रम संहितायें  देश में श्रमिकों के कल्याण के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होंगी. उन्होंने आगे बताया कि, वर्ष 2014 के बाद से केंद्र सरकार ने श्रमिकों के कल्याण के लिए कई कदम उठाए हैं और इन श्रम संहिताओं के माध्यम से, समग्र श्रम सुधार हासिल करने का लक्ष्य साकार हो रहा है.

श्रम मंत्री के अनुसार, सामाजिक सुरक्षा संहिता व्यापक सामाजिक सुरक्षा के दायरे में संगठित और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को शामिल करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करती है. इसमें भवन निर्माण श्रमिकों और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए EPFO, ESIC, मातृत्व लाभ, ग्रेच्युटी सामाजिक सुरक्षा निधि से संबंधित प्रावधान शामिल हैं. इस सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 का उद्देश्य प्रधानमंत्री की सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा के दृष्टिकोण का क्रियान्वयन करना है.

इन श्रम सुधारों को लागू करने का प्रमुख उद्देश्य हमारे श्रम कानूनों को कार्यस्थल की निरंतर बदलती हुई दुनिया के अनुरूप बनाना है और श्रमिकों और उद्योगों की आवश्यकताओं को संतुलित करते हुए एक प्रभावी और पारदर्शी प्रणाली प्रदान करना है. श्रम मंत्री ने कहा कि, यदि भारत अपने श्रम कानूनों में आवश्यक बदलाव नहीं करता है, तो हम इन दोनों क्षेत्रों अर्थात श्रमिकों के कल्याण और उद्योगों के विकास में पीछे रह जाएंगे.

मंत्रीजी ने आगे जोर देकर यह कहा कि, आत्मनिर्भर श्रमिक के कल्याण और अधिकारों की संरचना निम्नलिखित चार स्तंभों पर आधारित है:

देश में 44 श्रम कानूनों के होने के बावजूद, श्रम मंत्री ने यह बताया कि, भारत के 50 करोड़ श्रमिकों में से केवल 30 प्रतिशत श्रमिकों को ही न्यूनतम मजदूरी का कानूनी अधिकार था और सभी श्रमिकों को समय पर वेतन नहीं दिया गया था. इस नई श्रम संहिता के तहत, संगठित और असंगठित क्षेत्र के सभी 50 करोड़ श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी और समय पर मजदूरी का कानूनी अधिकार मिलेगा.

हालांकि, इन प्रावधानों के तहत, इस अवधि के दौरान सौहार्दपूर्ण बातचीत के माध्यम से विवाद को समाप्त करने का प्रयास करने के लिए प्रत्येक संस्थान पर 14 दिन की नोटिस अवधि की बाध्यता लगाई गई है.

अगर किसी कर्मी की नौकरी छूट जाए तो, दोबारा रोजगार हासिल करने की संभावना बढ़ाने के उद्देश्य से इस IR संहिता में रि-स्किलिंग फंड का प्रावधान शामिल किया गया है. इन श्रमिकों को इस उद्देश्य के लिए 15 दिन का वेतन दिया जाएगा.

इस IR संहिता में कोविड -19 के परिदृश्य में प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों को मजबूत करने का भी एक विशेष प्रावधान है. सबसे पहले और सबसे महत्त्वपूर्ण, प्रवासी श्रमिकों की परिभाषा को व्यापक बनाया गया है.

अब 18,000 रुपये से कम मासिक वेतन कमाने वाले और एक राज्य से दूसरे राज्य में आने-जाने वाले सभी श्रमिक इस प्रवासी श्रम की परिभाषा में शामिल होंगे और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त करेंगे.

इस संहिता में प्रवासी श्रमिकों के लिए एक डाटाबेस बनाने का प्रावधान भी शामिल है ताकि उनकी कल्याणकारी योजनाओं की पोर्टेबिलिटी और एक अलग हेल्पलाइन व्यवस्था कायम की जा सके. इसके अलावा, इस नई श्रम संहिता के तहत नियोक्ताओं को प्रवासी श्रमिकों को वर्ष में एक बार अपने मूल स्थान पर जाने के लिए यात्रा भत्ता प्रदान करना होगा.

कुल 29 श्रम कानूनों के समामेलन और व्यापक परामर्श के बाद यह नई श्रम संहिता तैयार की गई है. केंद्र सरकार ने इस श्रम संहिता को अंतिम रूप देने से पहले कई चर्चाएं कीं, जिनमें व्यापार संघों, विशेषज्ञों और अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ परामर्श और अंतर-मंत्रालयी परामर्श के साथ-साथ 2-3 महीनों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में यह श्रम संहिता रखकर हासिल किये गये सार्वजनिक सुझावों को ध्यान में रखना शामिल है.

Lokesh Rajak

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