राजनांदगांव: कोरोना काल में टूट रही है कोचिंग संस्थानों की साँस…

सोनू मुगल पिछले पाँच साल से कंप्यूटर प्रशिक्षण एवं कोचिंग क्लास की तैयारी कराने वाले कुछ संस्थानों में पढ़ाते हैं ।

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कोचिंग संस्थानों से उन्हें परिवार के जीवन यापन के लिए आमदनी होती थी। लॉकडाउन के बाद कोचिंग संस्थान बंद चल रहे हैं और सोनू मुगल बेरोज़गार हो गए हैं।

यह हाल अकेले सोनू मुगल का ही नहीं, बल्कि कोचिंग संस्थानों में पढ़ाने वाले हज़ारों शिक्षकों का है, जो या तो फ़ुल टाइम या फिर पार्ट टाइम इस पेशे से जुड़े हुए हैं।

कोचिंग संस्थानों के संचालक और उनके ज़रिए रोज़गार पाए लोग भी इस समय बेकारी का दंश झेल रहे हैं और आगे भी स्थिति कुछ बेहतर होने की उन्हें उम्मीद नहीं दिख रही है।

देश भर में छाए इस आर्थिक संकट का असर निजी शिक्षण संस्थानों, कोचिंग संस्थानों और इससे जुड़े लोगों पर भी पड़ रहा है।

कोचिंग संचालकों का कहना है कि “अप्रैल की शुरुआत से ही क़रीब सारे कोचिंग संस्थान बंद चल रहे हैं। यानी, दो महीने से हमें कोई आमदनी नहीं हुई है। सरकार जो गाइडलाइन जारी करती है, उसमें यूनिवर्सिटी-कॉलेज का ज़िक्र तो होता है लेकिन कोचिंग संस्थानों के बारे में कोई चर्चा नहीं होती। यूनिवर्सिटी-कॉलेजों को सरकार ने कई तरह की छूट दे रखी है, लेकिन हमारी कोई पूछ नहीं है। ज़्यादातर कोचिंग संस्थान किराए के मकानों में चलते हैं. शुरू में तो हमने किराया दिया लेकिन अब असमर्थ हैं और मकान मालिक किराए के लिए दबाव बना रहे हैं।”

हालांकि कुछ संस्थान छात्रों को ऑनलाइन कक्षाओं का विकल्प दे रहे हैं और कुछ ने इसकी शुरुआत भी कर दी है लेकिन अभी ऑनलाइन माध्यम से पढ़ने वाले छात्रों की संख्या बेहद कम है। दूसरे, ऑनलाइन कक्षाएँ बेरोज़गारी कम करने में बहुत ज़्यादा मददगार भी नहीं हो पाएँगी।

छात्रों पर टिकी अर्थव्यवस्था

राजनांदगांव में कई मोहल्ले ऐसे हैं, जिनकी अर्थव्यवस्था ही छात्रों पर टिकी हुई है. लॉकडाउन के बाद ऐसे ज़्यादातर मोहल्ले ख़ाली हो गए हैं।

शाम को जहाँ छात्रों की भीड़ लगी रहती थी, वो सड़कें वीरान हो गई हैं और वहाँ के तमाम दुकानदारों की आमदनी पर भी काफ़ी प्रभाव पड़ा है।

छात्रों की बड़ी संख्या की वजह से शहरों में कई मकान हैं, जहाँ लॉज या पीजी बनाकर छात्रों को किराए पर दिया जाता है।

लेकिन ये मकान अब ख़ाली हो गए हैं और इनके मालिकों के सामने भी रोज़ी रोटी का संकट आ पड़ा है।

राजनांदगांव के चिखली इलाक़े में एक पीजी चलाने वाले ठाकुर परिवार कहते हैं, “लड़कियों के लिए 2-3 महीने से बेड ख़ाली हैं. लेकिन ख़र्च उतना ही है।

ठाकुर परिवार कहते हैं कि अगर यही स्थिति कुछ महीने और चलती रही तो उनके जैसे सैकड़ों लोग बर्बाद हो जाएँगे। राजनांदगांव के चिखली, स्टेशनपारा, शांतिनगर और रामनगर इलाक़े में भी ऐसे कई पीजी हैं और ज़्यादातर इन दिनों ख़ाली पड़े हैं।

कोचिंग संस्थानों के संचालकों ने अपनी समस्या सरकार तक पहुँचाने की भी कोशिश की है लेकिन फ़िलहाल उन्हें राहत की उम्मीद नहीं दिखती।

RAHUL RAMTEKE

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