छत्तीसगढ़

राजनांदगांव : धर्म का प्रारम्भ श्रद्धान से होता है…

आचार्य आर्जवसागर डोंगरगांव में पधारे जैन मुनि संत आचार्य आर्जवसागर

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डोंगरगांव। नगर में कल सायंकाल में आचार्य श्री आर्जवसागर जी महाराज ससंघ की भव्य मंगल आगवानी की गई।नगर में जगह -जगह गुरूवर ससंघ का पाद-प्रक्षालन किया गया एवं मंगल आरती उतारी गई पश्चात गुरुवर ससंघ ने भव्य जिनालय का दर्शन कर एवं जिनालय के मूलनायक भगवान अजितनाथ का दर्शन कर अपने आप को धन्य माना, इतना भव्य जिनालय बड़ा ही मनोरम लगता है। इसके पश्चात आचार्य श्री की मंगलमयी देशना सुनने का सौभाग्य डोंगड़गांव वासियों को प्राप्त हुआ।


आचार्य श्री नें अपने मंगल प्रवचन के दौरान कहा कि इस पावन आर्यखंड में तीर्थंकर का अवतार हुआ है। तीर्थंकर ने मोक्षमार्ग को प्राप्त कर अपना कल्याण किया है। मोक्ष मार्ग पर बढ़ने वाली आत्मा अपने आप को धन्य मानती हैं। त्याग ,नियम, संयम के माध्यम से सातिशय पुण्य का आयोजन करते हुए वे तीर्थंकर भव से पार हुए हैं। हमें भी आज इस धरा पर तीर्थंकर की परंपरा का अनुगमन करने वाले मुनि महाराज साधु संत मिले हैं। वे मुनि महाराज जगह-जगह बिहार करते हुए हम सभी को पापों से,कषायों स्व बचाकर सन्मार्ग पर चलने का उपदेश देते हैं। धर्म; आत्मा का गुण है और उसके माध्यम से अनादिकालीन भव की परंपरा टूट जाती है जिससे अभ्युदय, निः श्रेयस सुख की प्राप्ति होती हैं।

आचार्य श्री ने कहा कि हम सभी का एक ही लक्ष्य होना चाहिए जो कि है- मोक्ष पाना। इसके लिए मात्र वीतराग ही सच्ची शरण है। धर्म का प्रारंभ श्रद्धान से होता है। जो वीतराग देव शास्त्र गुरु पर सच्चा श्रद्धा करता है,वही धर्मी होता है। वह मात्र वीतराग को ही नमन करता है,अन्य को नहीं। आचार्य श्री जी नें धर्म के बारे में बताते हुए कहा कि वस्तु का स्वभाव ही धर्म है और जीवो की रक्षा करना भी धर्म है।क्षमा आदि भाव भी धर्म ही हैं। हम कहीं जाने से पहले अथवा कुछ कार्य करने से पहले अपना लक्ष्य निर्धारित करते हैं। हमारा मुख्य लक्ष्य तो सिद्ध पद की प्राप्ति प्राप्त करना है।लक्ष्य निर्धारित करने के बाद ही कार्य का प्रारंभ करते हैं। संपूर्ण कर्म की निर्जरा होने के बाद ही मोक्ष प्राप्त होता है। अतः बंधुओ नियम संयम ही कर्मों की निर्जरा में कारण है। इसलिए नियम, संयम, दान ,धर्म कर अपने जीवन को सफल बनाते रहो।

आचार्य श्री के दर्शनार्थ टडा (केसली) नगर से पधारे श्रद्धालुगण
आचार्य श्री आर्जवसागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री विलोकसागर जी विबोधसागर जी महाराज का अभी कुछ दिन से टडा नगर में प्रवास चल रहा है।मुनिद्वय की पावन प्रेरणा से वहां से पधारी कमेटीजन एवं ब्रम्हचारी गण ने गुरु समक्ष निवेदन किया कि हे गुरुदेव! मुनिद्वय के सान्निध्य में वहां 9 फरवरी से इन्द्रध्वज महामंडल विधान होने जा रहा है।आप आशीर्वाद दीजिये कि विधान सानन्द सम्पन्न हो और आपका एवं ससंघ का सान्निध्य भी हम टडा वासियों को प्राप्त हो।यही हमारी मंगल भावना है।

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