रायपुर : संचालनालय कृषि के वैज्ञानिकों ने राज्य के किसानों को मौसम आधारित सामयिक सलाह दी है कि गेंहू की फसल बालियां निकलने की अवस्था में है अतः जो किसान भाई बीज उत्पादन करना चाहते हैं वे विजातीय पौधों को निकालकर खेत से अलग करें। लगातार बादल छाए रहने के कारण चने में इल्ली का प्रकोप होने की संभावना है अतः इल्ली को हाथ से चुनकर नष्ट करें। किटहारी पक्षियों की खेतों में सक्रियता बढ़ाने हेतु 20-25 नग लकड़ियां प्रति हेक्टर की दर से अलग-अलग स्थानों में लगाएं।
व्यस्क कीटो कि निगरानी हेतु फिरोमेन ट्रेप 2 नग प्रति एकड़ की दर से लगाएं। सरसों फसल में माहूँ (एफिड) कीट की शिशु और वयस्क दोनों ही हानिकारक अवस्थाएँ है। इस कीट की अधिक प्रकोप होने पर नियंत्रण के लियें इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 250 मि.ली. प्रति हेक्टेयर की दर से घोल बनाकर 10-15 दिन के अंतराल पर आवश्यकतानुसार दो से तीन बार छिड़काव करें।
किसान भाइयों को सलाह दी गई है कि ग्रीष्म कालीन धान की फसल में तना छेदक के प्रकोप से फसल को बचाने हेतु प्रारम्भिक नियंत्रण के लिए प्रकाश प्रपंच अथवा फिरोमेन ट्रेप का उपयोग करें। दलहनी फसलों में पीला मोजेक रोग दिखाई देने पर रोगग्रस्त पौधों को उखाड कर नष्ट कर दें तथा मेटासिस्टाक्स या रोगोर कीटनाशक दवा 1 मिली/लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
फल और सब्जियों की फसलांे में प्याज में बैगनी धब्बा बीमारी दिखने या पत्तियां सूखने पर साफ नामक दवा को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। लगातार बादल छाए रहने के कारण सब्जियों में एफिड (मैनी) एवं भटा में फल एवं तनाछेदक लगने की संभावना हैं।
अतः किसान भाइयों को सलाह हैं की प्रारम्भिक कीट नियंत्रण हेतु एकीकृत कीट प्रबंधन का प्रयोग जैसे फीरोमोन प्रपंच, प्रकाश प्रपंच या खेतों में पक्षियों के बैठने हेतु खूटी लगाना लाभकारी होता है। आम में इस समय बौर आ चुका है तथा फल लगना प्रारम्भ हो रहा है। इस अवस्था में बौर में भभूतिया रोग लगने की संभावना रहती है।
अतः सलाह दी जाती है कि इसकी सतत निगरानी करें तथा रोग के लक्षण दिखाई देने की स्थिति में बॉविस्टीन 1.5 ग्राम अथवा सल्फेक्स 3 ग्राम प्रतिलीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिडकाव करें।
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