VISION TIMES : नक्सली कब्जे से मुक्त जवान पहुँचा घर….

VISION TIMES – छत्तीसगढ़ के सुकमा से नक्सलियों के चुंगल से छुड़ाये गये | जम्मू के लाल सीआरपीएफ के कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह मनहास आज जम्मू पहुंचे। एयरपोर्ट के बाहर राकेश्वर सिंह की झलक दिखी तो वहां लोगों ने भारत माता की जय और राकेश्वर सिंह जिंदाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिये। जवान के साथ उनके साथ रिहाई में अहम भूमिका निभाने वाले सदस्य भी पहुंचे।

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राकेश्वर की मां पत्नी व बच्ची भी एयरपोर्ट पर उन्हें लेने के लिये पहुंची थी । राकेश्वर को ठीक देखकर हर किसी की आंखें खुशी से नम दिखी । तिलक लगाकर और हार पहनाकर राकेश्वर का स्वागत किया गया। कोबरा कमांडो के घर पहुंचने से पहले ही गांव में उत्साह का माहौल रहा। जम्मू पहुंचते ही राकेश्वर और उनके परिवार ने मीडिया और सरकार का धन्यवाद दिया ।

जम्मू टर्मिनल पर लैंड होने के बाद वे सीधा जम्मू के एक रिसोर्ट कांगड़ा फोर्ट में पहुंचे जहां पुलिस, सीआरपीएफ सहित उनके परिवार वाले, चिरपरिचित और दोस्तों का तांता लगा रहा। उनके गांव बरनाई में सभी लोग राकेश्वर को देखने के लिये पहुंचे हुये थे। यहां हर कोई अपने नायक की एक झलक पाने के लिये आतुर थे। जम्मू पहुंचकर मीडिया से बातचीत में राकेश्वर सिंह ने कहा कि नक्सलियों के चुंगल में रहने के दौरान भी उन्होंने कभी हिम्मत और आस नहीं छोड़ी थी।

आज अपने घर वापस आकर उन्हें अच्छा लग रहा है । उन्होंने मीडिया और सरकार का धन्यवाद करते हुये सबसे पहले अपने परिवार के साथ मिलने की इच्छा जतायी, क्योंकि उनके परिवार ने उनके बंधक रहते एक एक दर्द भर पलं बिताये हैं। इसके अलावा उन्होंने उन सब लोगों कंआ धन्यवाद किया जो उस दुख की घड़ी में उनके परिवार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे ।

गौरतलब है कि 03 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में सुरक्षाबलों पर हमला कर नक्सलियों ने राकेश्वर सिंह मनहास को बंधक बना लिया था। इस मुठभेड़ के दौरान सुरक्षा बलों के 22 जवान शहीद हो गये जबकि 31 अन्य जवान घायल हो गये।

शहीद जवानों में सीआरपीएफ के कोबरा बटालियन के 07 जवान, बस्तरिया बटालियन का 01 जवान, डीआरजी के 08 जवान और एसटीएफ के 06 जवान शामिल हैं। वहीं कोबरा 210 वीं वाहिनी के जवान राकेश्वर सिंह मनहास को नक्सलियों ने अगवा कर लिया था। छह दिनों तक अपने कब्जे में रखने के बाद नक्सलियों ने उसे सैकड़ों ग्रामीणों के सामने सुरक्षित रिहा किया था। अगवा के बाद वे जवान की आंख में पट्टी बांध कर उसे एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाते रहे।