भारत ने 28 अक्टूबर 2020 को मध्य एशियाई देशों में ”प्राथमिकता” वाली विकास परियोजनाओं के लिए एक अरब अमेरिकी डॉलर की आर्थिक सहायता देने का घोषणा किया. भारत ने आतंकवाद और उग्रवाद की आम चुनौतियों का सामना करने सहित संसाधन-समृद्ध इस क्षेत्र के साथ सहयोग को और विस्तार देने की भी प्रतिबद्धता जताई.
भारत-मध्य एशिया वार्ता की दूसरी बैठक के दौरान भारत द्वारा वित्तीय सहायता की राशि के संबंध में घोषणा की गई. इस दौरान दोनों पक्षों के बीच सहयोग को विस्तार देने के तौर-तरीकों के साथ ही अन्य प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की गई.
ऑनलाइन बैठक की अध्यक्षता
इस ऑनलाइन बैठक की अध्यक्षता विदेश मंत्री एस जयशंकर ने की. इस दौरान कजाखस्तान, तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के उनके समकक्षों ने भी बैठक में हिस्सा लिया जबकि किर्गिस्तान के प्रथम उप विदेश मंत्री और अफगानिस्तान के कार्यकारी विदेश मंत्री भी विशेष आमंत्रित के तौर पर शामिल हुए.
संयुक्त बयान में क्या कहा गया?
वार्ता के बाद एक संयुक्त बयान में कहा गया कि मध्य एशियाई देशों के मंत्रियों ने कनेक्टिविटी, ऊर्जा, सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, कृषि जैसे क्षेत्रों में प्राथमिकता आधारित विकास परियोजनाओं के लिए भारत की ओर से एक अरब डॉलर की आर्थिक सहायता की घोषणा का स्वागत किया. बयान के अनुसार, मंत्रियों ने आतंकवाद के सभी रूपों की कड़ी निंदा की.
भारत-मध्य एशिया संबंध
भारत साल 1990 के दशक से मध्य-एशियाई गणराज्यों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने की कोशिश कर रहा है लेकिन अब तक के प्रयासों के बेहतर परिणाम नहीं निकले पाए हैं. भारत का सभी पाँच देशों (कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान) के साथ द्विपक्षीय व्यापार 2 बिलियन डॉलर से कम है.
भारत ने इसके लिये मध्य एशिया को भू-आबद्ध क्षेत्र के रूप में होने को ज़िम्मेदार माना है और वाणिज्य में सुधार के लिये चाबहार पोर्ट के माध्यम से वैकल्पिक मार्ग खोजने की कोशिश की है.
हालाँकि भौगोलिक रूप से अफगानिस्तान और मध्य एशिया भू-आबद्ध क्षेत्र हैं, इसके बावजूद ऐसे कई तरीके हैं जिनसे भारत, अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देश इस क्षेत्र में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने हेतु काम कर सकते हैं ताकि देशों के बीच व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में आदान-प्रदान सुनिश्चित हो सके.
source- jagranjosh.com