कोरोना वायरस की वजह से जारी लॉकडाउन का बुरा असर भी सामने आया है तो वहीं इसका पॉजिटिव पक्ष भी देखने को मिल रहा है। उद्योगों के बंद होने, वाहनों के थम जाने से शोरगुल कम हुआ है। पर्यावरण प्रदूषण पर भी कुछ हद तक लगाम लगा है। विशेषकर इसका सबसे ज्यादा पॉजिटिव इफैक्ट पक्षियों पर हुआ है। आंगन में अब तोते, गौरइया और बुलबुल दिखने लगे हैं। पांच सालों से पक्षियों के संरक्षण की दिशा में काम कर रहे टांकापारा निवासी 65 वर्षीय अशफाक अहमद का कहना है कि उनके बर्ड हाउस में पहले कभी इतने सारे पक्षियों का झुंड नहीं दिखा।
पहले गिनती के ताेते ही आसपास मंडराते थे पर जब से लॉकडाउन हुआ है तब से पक्षियों की चहचहाट बढ़ी है। बर्ड गार्डन में तोते के अलावा अब तो गौरइया, बुलबुल, हॉनबिल जैसे पक्षियों की आवाजाही बनी हुई है। पर्यावरण प्रेमी अशफाक का कहना है कि यह दिन पक्षियों के लिए बेहतर साबित हो रहा है, जो कि बिना कोई शोरगुल के खुले आसमान पर बेफिक्र मंडरा रहे हैं।
पक्षियों के लिए समर्पित गार्डन–
अशफाक अहमद ने बताया कि लंबे समय तक व्यवसाय से जुड़े रहे हैं पर अब िरटायर्ड हो गए हैं। घर बैठने के बाद लगा कि कुछ ऐसा किया जाए कि पर्यावरण को लाभ हो। इस उद्देश्य से घर के गार्डन को पक्षियों के अनुकूल तैयार किया। गार्डन में जगह-जगह कृत्रिम घोसले तैयार किए। लकड़ी के घोसले भी लगवाए, ताकि पक्षी यहां आकर आराम करें। टेरिस पर दाना व पानी की व्यवस्था की है। पक्षी दाना खाने यहां जरूरत आते हैं।
बगुलों का झुंड भी आने लगा-
ठंड के दिनों में तोते ज्यादा आते थे। फिलहाल इनकी संख्या कम हुई है पर अन्य पक्षियों की झुंड बढ़ गया है। बर्ड हाउस में ही छोटा सा पॉन्ड भी तैयार कर रखा है। इसमें मछलियां डाली गई हैं। शाम को बगुले भी यहां आकर बैठने लगे हैं। अशफाक ने बताया कि पांच साल से पक्षियों के संरक्षण में जुटे हैं पर पहले कभी इतने पक्षी नहीं दिखे। लगता है कि शोरगुल थमने के कारण पक्षियों को सुकून मिला है।
पत्नी और बच्चे भी इस काम में जुटे–
पक्षियों के संरक्षण में सिर्फ अशफाक ही भूमिका अदा नहीं कर रहे हैं बल्कि पत्नी बतूल अहमद और बेटा डॉ अदनान अहमद भी हाथ बंटाते हैं। पक्षियों के लिए दाना, पानी का इंतजाम करते हैं। दिनभर गार्डन के आसपास में पक्षियों की चहक बनी रहती है। समीप में ही एक स्कूल है। बर्ड गार्डन की वजह से स्कूल के दिनों में बच्चे भी यहां पक्षियों को देखने आते हैं।