रायपुर : गौ-काष्ठ का उपयोग अलाव और दाह संस्कार में करने आयुक्त और सीएमओं को निर्देश जारी, नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ शिवकुमार डहरिया ने दिए थे निर्देश…

 रायपुर 1 फरवरी 2021- प्रदेश के गोठानों में तैयार गौ-काष्ठ और कण्डे एक वैकल्पिक और जैविक ईंधन का बड़ा जरिया बन सकता है। इसके जलने से प्रदूषण भी नहीं फैलता और इसका उत्पादन भी आसान है।

Advertisements

नगरीय निकाय क्षेत्रो में अलाव और दाह संस्कार में लकड़ी के स्थान पर गौ काष्ठ के उपयोग को बढ़ावा देने से वैकल्पिक ईंधन के उत्पादन में गति आएगी। प्रदेश के नगरीय निकायों में ठण्ड के दिनों में लगभग 400 अलाव चौक-चौराहों पर जलाए जाते हैं। चौक चौराहों में नगरीय निकाय द्वारा सूखी लकड़ी का उपयोग अलाव के लिए किया जाता था। अलाव के रूप में लकड़ी का उपयोग होने से पेड़ कटाई को बढ़ावा और पर्यावरण को भी नुकसान पहुचता था। अलाव में गोबर काष्ठ का उपयोग होने से इसके कई फायदे होंगे। गोबर काष्ठ से प्रदूषण का खतरा भी नहीं रहेगा और गोठानों के गोबर का सदुपयोग भी होगा।

खास बात यह भी है कि गोबर काष्ठ का अलाव के जलने की क्षमता लकड़ी के अलाव की अपेक्षा अधिक होती है। रायपुर जैसे शहर में 12 से 30 दाह संस्कार होते हैं। एक दाह संस्कार में अनुमानित 500 से 700 किलो लकड़ी का उपयोग होता है। अलाव और दाह संस्कार में लकड़ी को जलाए जाने से भारी मात्रा में कार्बन का उत्सर्जन होता है, जो कि पर्यावरण के लिए अनुकूल नहीं है। यदि गौ काष्ठ का उपयोग लकड़ी के स्थान पर किया जाए तो महज 300 किलों में ही दाह संस्कार किया जा सकता है। इससे प्रदूषण भी नहीं फैलता है।