अर्थशास्त्र (इकोनॉमिक्स) क्या है?
अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोग का अध्ययन किया जाता है। ‘अर्थशास्त्र’ शब्द संस्कृत शब्दों अर्थ (धन) और शास्त्र की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है – ‘धन का अध्ययन’। किसी विषय के संबंध में मनुष्यों के कार्यो के क्रमबद्ध ज्ञान को उस विषय का शास्त्र कहते हैं, इसलिए अर्थशास्त्र में मनुष्यों के अर्थसंबंधी कायों का क्रमबद्ध ज्ञान होना आवश्यक है।
अर्थशास्त्र का प्रयोग यह समझने के लिये भी किया जाता है कि अर्थव्यवस्था किस तरह से कार्य करती है और समाज में विभिन्न वर्गों का आर्थिक सम्बन्ध कैसा है। अर्थशास्त्रीय विवेचना का प्रयोग समाज से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे:- अपराध, शिक्षा, परिवार, स्वास्थ्य, कानून, राजनीति, धर्म, सामाजिक संस्थान और युद्ध इत्यदि।
परिचय
ब्रिटिश अर्थशास्त्री अल्फ्रेड मार्शल ने इस विषय को परिभाषित करते हुए इसे ‘मनुष्य जाति के रोजमर्रा के जीवन का अध्ययन’ बताया है। मार्शल ने पाया था कि समाज में जो कुछ भी घट रहा है, उसके पीछे आर्थिक शक्तियां हुआ करती हैं। इसीलिए सामज को समझने और इसे बेहतर बनाने के लिए हमें इसके अर्थिक आधार को समझने की जरूरत है।
लियोनेल रोबिंसन के अनुसार आधुनिक अर्थशास्त्र की परिभाषा इस प्रकार है-
वह विज्ञान जो मानव स्वभाव का वैकल्पिक उपयोगों वाले सीमित साधनों और उनके प्रयोग के मध्य अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करता है।
दुर्लभता (scarcity) का अर्थ है कि उपलब्ध संसाधन सभी मांगों और जरुरतों को पूरा करने में असमर्थ हैं। दुर्लभता और संसाधनों के वैकल्पिक उपयोगों के कारण ही अर्थशास्त्र की प्रासंगिकता है। अतएव यह विषय प्रेरकों और संसाधनों के प्रभाव में विकल्प का अध्ययन करता है।
अर्थशास्त्र में अर्थसंबंधी बातों की प्रधानता होना स्वाभाविक है। परंतु हमको यह न भूल जाना चाहिए कि ज्ञान का उद्देश्य अर्थ प्राप्त करना ही नहीं है, सत्य की खोज द्वारा विश्व के लिए कल्याण, सुख और शांति प्राप्त करना भी है। अर्थशास्त्र यह भी बतलाता है कि मनुष्यों के आर्थिक प्रयत्नों द्वारा विश्व में सुख और शांति कैसे प्राप्त हो सकती है। सब शास्त्रों के समान अर्थशास्त्र का उद्देश्य भी विश्वकल्याण है। अर्थशास्त्र का दृष्टिकोण अंतर्राष्ट्रीय है, यद्यपि उसमें व्यक्तिगत और राष्ट्रीय हितों का भी विवेचन रहता है। यह संभव है कि इस शास्त्र का अध्ययन कर कुछ व्यक्ति या राष्ट्र धनवान हो जाएँ और अधिक धनवान होने की चिंता में दूसरे व्यक्ति या राष्ट्रों का शोषण करने लगें, जिससे विश्व की शांति भंग हो जाए। परंतु उनके शोषण संबंधी ये सब कार्य अर्थशास्त्र के अनुरूप या उचित नहीं कहे जा सकते, क्योंकि अर्थशास्त्र तो उन्हीं कार्यों का समर्थन कर सकता है, जिसके द्वारा विश्वकल्याण की वृद्धि हो। इस विवेचन से स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र की सरल परिभाषा इस प्रकार होनी चाहिए-अर्थशास्त्र में मुनष्यों के अर्थसंबंधी सब कार्यो का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। उसका ध्येय विश्वकल्याण है और उसका दृष्टिकोण अंतर्राष्ट्रीय है।
परिभाषा
जिसमें धन सम्बंधित क्रियाओं का आध्ययन किया जाता है, अर्थशास्त्र कहलाता है। अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री का संकेत इसकी परिभाषा से मिलता है।
अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो मानव के स्वभाविक वैकल्पिक उपयोग करने वाले साधनो ओर उनके प्रयोग के मध्य सम्बन्ध का अध्ययन कराता हैं।
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एडम स्मिथ ने 1776 में प्रकाशित अपनी पुस्तक (An enquiry into the Nature and the Causes of the Wealth of Nations ) में अर्थशास्त्र को धन का विज्ञान माना है।
डॉ॰ मार्शल ने 1890 में प्रकाशित अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र के सिद्धान्त (Principles of Economics) में अर्थशास्त्र की कल्याण सम्बन्धी परिभाषा देकर इसको लोकप्रिय बना दिया।
ब्रिटेन के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री लार्ड राबिन्स ने 1932 में प्रकाशित अपनी पुस्तक, ‘‘An Essay on the Nature and Significance of Economic Science’’ में अर्थशास्त्र को दुर्लभता का सिद्धान्त माना है। इस सम्बन्ध में उनका मत है कि मानवीय आवश्यकताएं असीमित है तथा उनको पूरा करने के साधन सीमित है।
आधुनिक अर्थशास्त्री सैम्यूल्सन (Samuelson) ने अर्थशास्त्र को विकास का शास्त्र (Science of Growth ) कहा है।
अर्थव्यवस्था को प्रभवित करने वाले कारक
1. आर्थिक विकास दर का लगातार गिरना
यदि किसी अर्थव्यवस्था की विकास दर या जीडीपी तिमाही-दर-तिमाही लगातार घट रही है, तो इसे आर्थिक मंदी का बड़ा संकेत माना जाता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था या किसी खास क्षेत्र के उत्पादन में बढ़ोतरी की दर को विकास दर कहा जाता है.
यदि देश की विकास दर का जिक्र हो रहा हो, तो इसका मतलब देश की अर्थव्यवस्था या सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) बढ़ने की रफ्तार से है. जीडीपी एक निर्धारित अवधि में किसी देश में बने सभी उत्पादों और सेवाओं के मूल्य का जोड़ है.
2.कंजम्प्शन में गिरावट
आर्थिक मंदी का एक दूसरा बड़ा संकेत यह है कि लोग खपत यानी कंजम्प्शन कम कर देते हैं. इस दौरान बिस्कुट, तेल, साबुन, कपड़ा, धातु जैसी सामान्य चीजों के साथ-साथ घरों और वाहनों की बिक्री घट जाती है. दरअसल, मंदी के दौरान लोग जरूरत की चीजों पर खर्च को भी काबू में करने का प्रयास करते हैं.
कुछ जानकार वाहनों की बिक्री घटने को मंदी का शुरुआती संकेत मानते हैं. उनका तर्क है कि जब लोगों के पास अतिरिक्त पैसा होता है, तभी वे गाड़ी खरीदना पसंद करते हैं. यदि गाड़ियों की बिक्री कम हो रही है, इसका अर्थ है कि लोगों के पैसा कम पैसा बच रहा है.indian-economy-thinkstock
3.औद्योगिक उत्पादन में गिरावट
अर्थव्यवस्था में यदि उद्योग का पहिया रुकेगा तो नए उत्पाद नहीं बनेंगे. इसमें निजी सेक्टर की बड़ी भूमिका होती है. मंदी के दौर में उद्योगों का उत्पादन कम हो जाता. मिलों और फैक्ट्रियों पर ताले लग जाते हैं, क्योंकि बाजार में बिक्री घट जाती है.
यदि बाजार में औद्योगिक उत्पादन कम होता है तो कई सेवाएं भी प्रभावित होती है. इसमें माल ढुलाई, बीमा, गोदाम, वितरण जैसी तमाम सेवाएं शामिल हैं. कई कारोबार जैसे टेलिकॉम, टूरिज्म सिर्फ सेवा आधारित हैं, मगर व्यापक रूप से बिक्री घटने पर उनका बिजनेस भी प्रभावित होता है.
4.बेरोजगारी बढ़ जाती है
अर्थव्यवस्था में मंदी आने पर रोजगार के अवसर घट जाते हैं. उत्पादन न होने की वजह से उद्योग बंद हो जाते हैं, ढुलाई नहीं होती है, बिक्री ठप पड़ जाती है. इसके चलते कंपनियां कर्मचारियों की छंटनी करने लगती हैं. इससे अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी बढ़ जाती है.
5.बचत और निवेश में कमी
कमाई की रकम से खर्च निकाल दें तो लोगों के पास जो पैसा बचेगा वह बचत के लिए इस्तेमाल होगा. लोग उसका निवेश भी करते हैं. बैंक में रखा पैसा भी इसी दायरे में आता है.
मंदी के दौर में निवेश कम हो जाता है क्योंकि लोग कम कमाते हैं. इस स्थिति में उनकी खरीदने की क्षमता घट जाती है और वे बचत भी कम कर पाते हैं. इससे अर्थव्यवस्था में पैसे का प्रवाह घट जाता है.
6.कर्ज की मांग घट जाती है
लोग जब कम बचाएंगे, तो वे बैंक या निवेश के अन्य साधनों में भी कम पैसा लगाएंगे. ऐसे में बैंकों या वित्तीय संस्थानों के पास कर्ज देने के लिए पैसा घट जाएगा. अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए कर्ज की मांग और आपूर्ति, दोनों होना जरूरी है.
इसका दूसरा पहलू है कि जब कम बिक्री के चलते उद्योग उत्पादन घटा रहे हैं, तो वे कर्ज क्यों लेंगे. कर्ज की मांग न होने पर भी कर्ज चक्र प्रभावित होगा. इसलिए कर्ज की मांग और आपूर्ति, दोनों की ही गिरावट को मंदी का बड़ा संकेत माना जा सकता है.
7.शेयर बाजार में गिरावट
शेयर बाजार में उन्हीं कंपनियों के शेयर बढ़ते हैं, जिनकी कमाई और मुनाफा बढ़ रहा होता है. यदि कंपनियों की कमाई का अनुमान लगातार कम हो रहे हैं और वे उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रहीं, तो इसे भी आर्थिक मंदी के रूप में ही देखा जाता है. उनका मार्जिन, मुनाफा और प्रदर्शन लगातार घटता है.
शेयर बाजार भी निवेशक का एक माध्यम है. लोगों के पास पैसा कम होगा, तो वे बाजार में निवेश भी कम कर देंगे. इस वजह से भी शेयरों के दाम गिर सकते हैं.
8.घटती लिक्विडिटी
अर्थव्यवस्था में जब लिक्विडिटी घटती है, तो इसे भी आर्थिक मंदी का संकेत माना जा सकता है. इसे सामान्य मानसिकता से समझें, तो लोग पैसा खर्च करने या निवेश करने से परहेज करते हैं ताकि उसका इस्तेमाल बुरे वक्त में कर सकें. इसलिए वे पैसा अपने पास रखते हैं. मौजूदा हालात भी कुछ ऐसी ही हैं.
कुल मिलाकर देखा जाए तो अर्थव्यवस्था की मंदी के सभी कारणों का एक-दूसरे से ताल्लुक है. इनमें से कई कारण मौजूदा समय में हमारी अर्थव्यवस्था में मौजूद हैं. इसी वजह से लोगों के बीच आर्थिक मंदी का भय लगातार घर कर रहा है. सरकार भी इसे रोकने के लिए तमाम प्रयास कर रही है.
आम लोगों के बीच मंदी की आशंका कितनी गहरी है, इसक अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि बीते पांच सालों में गूगल के ट्रेंड में ‘Slowdown’ सर्च करने वाले लोगों की संख्या एक-दो फीसदी थी, जो अब 100 जा पहुंची है. यानी आम लोगों के जहन में मंदी का डर घर कर चुका है.
क्या कोरोना से प्रभावित हो रही है भारतीय अर्थव्यवस्था?
इससे ऑटोमोबाइल उद्योग, पर्यटन उद्योग, शेयर बाजार और दवा कंपनियों सहित कई सेक्टर प्रभावित हो रहे हैं। ना सिर्फ आईपीएल, बल्कि देश-दुनिया के बड़े-बड़े समारोह भी टाल दिए गए हैं। चीन में उत्पादन में आई कमी का असर भारत के व्यापार पर भी पड़ा है। इससे भारत की अर्थव्यवस्था को करीब 34.8 करोड़ डॉलर तक का नुकसान उठाना पड़ सकता है। आइए जानते हैं लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को कोरोना कैसे प्रभावित कर रहा है।
कोरोना संकट की चपेट में पर्यटन कारोबार
कोरोना का पर्यटन कारोबार पर भी असर दिखने लगा है क्योंकि कई देशों ने चीन और कोरोना वायरस से प्रभावित दूसरे देशों से आने वाले यात्रियों पर प्रतिबंध लगा दिए हैं। इस वजह से बड़ी संख्या में लोगों ने आगामी महीनों के लिए अपनी यात्रा रद्द करनी शुरू कर दी है। लोकल सर्किल के एक सर्वे में इसका खुलासा हुआ है।
सर्वे में शामिल 41 फीसदी लोगों ने कहा कि कोरोना संकट की वजह से वे गर्मी की छुट्टियों को लेकर चिंतित हैं, जबकि 72 फीसदी इसे लेकर सतर्क हैं। वहीं, 16 फीसदी लोगों का मानना है कि मौजूदा परिस्थितियों में उन्हें यात्राएं नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह वायरस प्रभावित कर सकता है। तीन फीसदी लोगों को वायरस को लेकर कोई चिंता नहीं है। उनका मानना है कि कोरोना वायरस उन्हें प्रभावित नहीं कर सकता है। 70 फीसदी लोगों ने कहा कि पिछले 30 दिनों में चीन या सिंगापुर से आने वाले लोगों पर सरकार को विशेष नजर रखनी चाहिए।
स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, “इटली, ईरान, दक्षिण कोरिया और जापान के नागरिकों को जो भी वीजा और ई-वीजा 3 मार्च 2020 या उससे पहले जारी किए गए हैं और जिन्होंने अभी भारत में प्रवेश नहीं किया है, वो सभी वीजा तत्काल प्रभाव से निलंबित किए जाते हैं।
अंतरराष्ट्रीय एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA) के मुताबिक विमानन उद्योग को यात्रियों से होने वाले कारोबार में कम से कम 63 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है। इस अनुमान में माल ढुलाई के व्यापार को होने वाला नुकसान भी शामिल नहीं है।
प्रभावित होगा वाहन उत्पादन
देश के वाहन उद्योग पर भी कोरोना वायरस का असर दिखने लगा है। अगर इसे काबू नहीं किया गया तो उद्योग के लिए भयावह स्थिति उत्पन्न हो जाएगी और सभी श्रेणी के वाहनों का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होगा। वाहन उद्योग निकाय सोसायटी ऑफ इंडियन मोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सियाम) ने बुधवार को कहा कि कई भारतीय वाहन निर्माता कंपनियां उत्पादन से जुड़े करीब 10 फीसदी कच्चे माल का आयात चीन से करती हैं। ऐसे में वहां से कच्चे माल की आपूर्ति ठप होने से वाहन उत्पादन गंभीर रूप से प्रभावित होगा।
सियाम के अध्यक्ष राजन वढेरा ने कहा कि भारतीय वाहन उद्योग ने चीनी नव वर्ष को ध्यान में रखते हुए पहले से ही वहां से आने वाले कलपुर्जों की अच्छी खासी इन्वेंट्री जमा की थी, लेकिन चीन में इस समय जो लॉकडाउन है, उससे बीएस-6 मानक उत्सर्जन मानक वाले वाहनों की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है। कलपुर्जों की आपूर्ति प्रभावित होने से हर तरह के यात्री वाहनों, वाणिज्यिक वाहनों, तिपहिया और दोपहिया वाहनों पर भी असर पड़ने की आशंका है।
इसके अलावा, इलेक्ट्रिक वाहनों का उत्पादन भी गंभीर रूप से प्रभावित होगा क्योंकि इसके लिए पावर पैक वहीं से आता है।
वढेरा ने कहा कि वाहन निर्माता कंपनियां अपनी आपूर्ति श्रृंखला मांगों को पूरा करने के लिए विकल्प तलाश रही हैं। लेकिन स्थिर उत्पादन पैमाने तक पहुंचने के लिए पर्याप्त समय लगेगा क्योंकि पहले इन कलपुर्जों की जांच करनी होगा और मानक पर खरा उतरने पर ही आयात होगा। उन्होंने कहा कि उद्योग के विशिष्ट सिफारिशों के साथ सियाम केंद्र सरकार के संपर्क में है। इस संबंध में जो भी निर्देश मिलेगा, उस पर अमल होगा।
भारत के ऑटोमोबाइल उद्योग में करीब 3.7 करोड़ लोग काम करते हैं। भारत में ऑटो उद्योग पहले से ही आर्थिक सुस्ती का शिकार था। अब यह और प्रभावित हो सकता है।
IPL रद्द होने पर हो सकता है करीब 10000 करोड़ रुपये का नुकसान?
मौजूदा स्थिति को देखते हुए अगर भारतीय क्रिकेट बोर्ड ‘बीसीसीआई’ आईपीएल के पूरे टूर्नामेंट को स्थगित करता, तो प्रसारकों और फ्रैंचाइजियों को मिलाकर कम से कम 3,000 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ सकता था। इस बात का अंदाजा सभी को था और यही कारण है कि कुछ फ्रैंचाइजियों के मालिक खाली स्टेडियम में मैच करवाने के लिए भी राजी हो गए। उनके मुताबिक स्टेडियम में सिर्फ एक प्रतिशत लोग ही मैच देखते हैं और उससे नुकसान तो होता लेकिन उतना अधिक नहीं।
BCCI ने आगे बढ़ाया IPL का आयोजन
कोरोना के बढ़ते खतरे को देखते हुए भारत सरकार द्वारा कई दिशानिर्देश जारी किए गए हैं और साथ ही कई तरह के कदम भी उठाए गए। इन सबके बाद बीसीसीआई के पास टूर्नामेंट को कुछ दिनों के लिए स्थगित करने के अलावा कोई अन्य विकल्प मौजूद नहीं था।
इसी को देखते हुए बीसीसीआई ने शुक्रवार को काफी सोच-विचार के बाद आईपीएल के 13वें संस्करण को दो हफ्ते के लिए टालने का फैसला किया और टूर्नामेंट को 29 मार्च की जगह 15 अप्रैल से करवाने के लिए तैयार हुई।
फ्रैंचाइजियों के साथ होगी BCCI की अहम बैठक
हालांकि अभी भी बोर्ड के सामने फ्रैंचाइजियों और प्रसारकों के कई तरह के सवाल हैं, जिसे लेकर सोमवार को एक अहम बैठक भी होनी है। इस बैठक में आयोजन स्थल, विदेशी खिलाड़ियों के खेलने और टूर्नामेंट की नई तारीखों समेत खाली मैदान में खेलने के मुद्दों पर चर्चा होने के आसार हैं। वहीं इससे पहले शनिवार को आईपीएल गवर्निंग काउंसिल भी आपस में एक महत्वपूर्ण बैठक करेगी और कुछ मामलों पर चर्चा करेगी।
हजारों करोड़ का नुकसान?
लेकिन बीसीसीआई के सामने स्वास्थ, सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक स्तर की भी चिंता थी। इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया की सबसे अमीर क्रिकेट लीग के रद्द होने पर कई हजार करोड़ रुपये का नुकसान होने की आशंका है। इतना ही नहीं टूर्नामेंट के रद्द होने पर कई सौ नौकरियां भी दांव पर लगेंगी। इन सब कारणों को देखते हुए बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली ने भी कहा कि फिलहाल के लिए आईपीएल को टाल रहे हैं।
रिपोर्ट्स की मानें तो आठ अलग-अलग फ्रैंचाइजियों को जहां 300-400 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ता, वहीं प्रसारकों, आयोजकों, स्पांसर को भी हजारों करोड़ रुपये का भारी नुकसान होता। बात करें भारतीय बोर्ड की तो सिर्फ बीसीसीआई को ही इससे कम से कम 3500 करोड़ रुपये का नुकसान होता।
इसके अलावा अलग-अलग शहरों में होने वाले आयोजन की वजह से यात्रा, होटल, ट्रांसपोर्ट जैसे कई क्षेत्रों में रोजगार को भी भार नुकसान होगा। अप्रत्यक्ष तौर पर हजारों की संख्या में नौकरियों पर भी खतरा मंडराएगा।
शेयर बाजार में आया भूचाल?
कोरोना वायरस के चलते भारतीय शेयर बाजार ने भी गिरावट के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। ना सिर्फ भारीत, बल्कि दुनियाभर के शेयर बाजारों का हाल बुरा है। हालत इतनी बदतर हो गई कि शुक्रवार को आज सेंसेक्स और निफ्टी 10 फीसदी से अधिक लुढ़क गए थे और इस वजह से ट्रेडिंग रोकनी पड़ी। यानी कुछ देर तक शेयर बाजार में कारोबार नहीं हुआ। निवेशक ना तो शेयर खरीद सके और ना ही बेच सके। ये ट्रेडिंग 45 मिनट के लिए रोकी गई। मालूम हो कि जब बाजार में 10 फीसदी या उससे अधिक की गिरावट आती है, तो उसमें लोअर सर्किट लग जाता है और ट्रेडिंग कुछ देर के लिए रोक दी जाती है। बाजार में सर्किट के इतिहास पर नजर डाले तो बाजार में 12 साल में पहली बार लोअर सर्किट लगा है।
भारतीय शेयर बाजार अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। शुक्रवार को शुरुआती कारोबार में 15 मिनट से भी कम समय में निवेशकों के 12 लाख करोड़ रुपये स्वाहा हो गए थे। गुरुवार को भी बाजार ऐतिहासिक गिरावट के साथ बंद हुआ था। तब शेयर बाजार के पतन के चलते निवेशकों के 11.42 लाख करोड़ रुपये डूब गए थे।
इतना ही नहीं, सप्ताह के पहले कारोबारी दिन सोमवार को भी सेंसेक्स-निफ्टी में एक दिन में भारी गिरावट देखने को मिली थी। तब बीएसई में निवेशकों की संपत्ति 6.84 लाख करोड़ रुपये कम हो गई थी।
7 देशों के बाजारों में लोअर सर्किट
सिर्फ भारत ही नहीं, इस सप्ताह हालात इतने बदतर हो गए थे कि अमेरिकी शेयर बाजार डाउ जोंस में ट्रेडिंग 15 मिनट के लिए रोक देनी पड़ी थी। अमेरिका के डाउ जोंस ने गिरने का इतिहास रच दिया। 24 घंटे में भारत समेत दुनिया के 7 देशों के बाजारों में लोअर सर्किट लगा। इनमें अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जमर्नी, इटली और रूस शामिल है।
दवा कंपनियां पर ऐसा पड़ रहा असर
कोरोना के कहर के चलते मेडिकल स्टोर में दवाओं की कमी हो रही है। सभी शहरों में केमिस्ट, सैनिटाइजर और मास्क के ऑर्डर तो दे रहे हैं लेकिन उन्हें एक हफ्ते से माल की डिलिवरी नहीं मिल पा रही है। अब जब बहुत से भारतीय अपने यहां दवाएं, सैनिटाइजर और मास्क जमा कर रहे हैं, तो ये सामान अधिकतम खुदरा मूल्य से भी अधिक दाम पर बिक रहे हैं।
थोक ऑनलाइन कारोबार की सबसे बड़ी भारतीय कंपनी ट्रेड इंडिया डॉट कॉम के मुताबिक, पिछले तीन माह में सैनिटाइजर और मास्क की मांग में 316 फीसदी का इजाफा हुआ है। ट्रेड इंडिया के सीओओ संदीप छेत्री ने बीबीसी को बताया कि, “भारत के मैन्युफैक्चरिंग उद्योग ने इस मांग को पूरा करने के लिए अपना उत्पादन कई गुना बढ़ा दिया है। ऐसे अन्य निजी सुरक्षात्मक उत्पादों की मांग भारत में भी बढ़ रही है और बाकी दुनिया में भी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर इसका फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है।’
हालांकि केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस के मद्देनजर मास्क व हैंड सैनिटाइजर की कमी व काला बाजारी की आशंका को देखते हुए इन्हें ‘आवश्यक वस्तु’ घोषित कर दिया है। ये उत्पाद जून तक ‘आवश्यक वस्तु’ बने रहेंगे ताकि इनकी काला बाजारी पर रोक लग सके और किफायती दामों पर उपलब्ध हो सकें।
निर्यात पर पाबंदी
भारत, जेनेरिक दवाओं का दुनिया भर में सबसे बड़ा निर्यातक है। चीन में उत्पादन बंद होने से भारत ने जरूरी कदम उठाते हुए कुछ दवाओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है ताकि भारत को अपनी जरूरत पूरी करने में कोई कमी न हो। इसलिए पैरासेटामॉल, विटामिन B1, B6 और B12 के साथ-साथ अन्य एपीआई और फॉर्मूलों की दवाओं के निर्यात पर पाबंदियां लगाई गई हैं।
आईफा ही नहीं, टले देश-दुनिया के ये बड़े समारोह
कोरोना वायरस के बढ़ते प्रभाव के कारण मध्यप्रदेश के इंदौर में होने वाला आईफा अवार्ड समारोह को टाल दिया गया है। अभी तक इसके आयोजन की अगली तिथि को लेकर कोई आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है। बता दें कि कोरोना वायरस के कारण राजनीति, खेल, तकनीकी से संबंधित देश और दुनिया में बहुत से अन्य कार्यक्रमों को भी अग्रिम सूचना तक के लिए निरस्त कर दिया गया है।
सीआईएसएफ का रेजिंग डे समारोह टला
कोरोना वायरस के मद्देनजर सभी केंद्रीय बलों ने होली मिलन समारोह रद्द कर दिया था। सीआईएसएफ ने रेजिंग डे समारोह को भी टाल दिया था।
पीएम मोदी का बेल्जियम दौरा टला
कोरोना वायरस के खतरे के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बेल्जियम दौरा टल गया है। बता दें कि पीएम मोदी को ब्रसेल्स में भारत-यूरोपियन यूनियन सम्मेलन में हिस्सा लेना था।
पीएम मोदी और भाजपा ने टाला होली मिलन समारोह
पीएम मोदी ने कोरोना वायरस के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए होली मिलन समारोह को टाल दिया है। वहीं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी सभी राज्यों के अध्यक्षों को पत्र लिखकर होली मिलन समारोह स्थगित करने की अपील की है।
गूगल का साल का सबसे बड़ा सालाना इवेंट रद्द
कोरोना के बढ़ते खतरे को देखते हुए गूगल ने अपना सालाना I/O इवेंट भी कोरोना वायरस के चलते रद्द कर दिया। इसका आयोजन 12-14 मई के बीच कैलिफोर्निया में होना था।
फेसबुक और माइक्रोसॉफ्ट के बड़े इवेंट रद्द
कोरोना के कारण फेसबुक ने अपनी F8 डेवलपर्स कॉन्फ्रेंस रद्द कर दी। वहीं माइक्रोसॉफ्ट ने वाशिंगटन में होने वाली एमवीपी समिट को रद्द कर दिया है। इसका आयोजन 15-20 मार्च को होना था।
शाओमी ने भारत में रद्द किया लॉन्च इवेंट
चीनी स्मार्टफोन कंपनी शाओमी ने भारत में अपने प्रोडक्ट लॉन्च इवेंट को रद्द कर दिया है। बता दें कि शाओमी मार्च में नई रेडमी नोट सीरीज लॉन्च करने वाली थी।
मोबाइल वर्ल्ड कांग्रेस का आयोजन हुआ रद्द
कोरोना वायरस के कारण दुनिया के सबसे बड़े फोन शो मोबाइल वर्ल्ड कांग्रेस 2020 को भी रद्द कर दिया गया है। इसका आयोजन 24-27 फरवरी को बार्सिलोना में होना था।
अमेरिका में फिल्म और संगीत का बड़ा कार्यक्रम रद्द
अमेरिका में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बीच टेक्सास के ऑस्टिन शहर के अधिकारियों ने फिल्म और संगीत से जुड़े एक बड़े कार्यक्रम को रद्द कर दिया है। साउथ बाय साउथवेस्ट नाम के इस कार्यक्रम में दुनियाभर से हजारों की संख्या में लोग आते हैं। ऑस्टिन के मेयर स्टीव एडलर ने शुक्रवार को प्रेसवार्ता में कहा कि वह शहर में स्थानीय आपदा घोषित कर रहे हैं और कार्यक्रम को रद्द करने का आदेश भी जारी कर रहे हैं।
जूलरी कारोबार पर प्रभाव
सुस्ती के बाद अब कोरोना संकट की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित होने लगी है। कामकाज पर भी असर पड़ने लगा है। जवाहरात और जूलरी का कारोबार भी कोरोना वायरस के प्रकोप से प्रभावित है। कोरोना वायरस से इस सेक्टर को करीब सवा अरब डॉलर का नुकसान होने की आशंका है। दरअसर भारत के तराशे और पॉलिश किए हुए हीरों के निर्यात के सबसे बड़े केंद्र चीन और हांगकांग हैं। इन देशों में वायरस का बहुत बुरा असर पड़ा है।
भारत में बहुत लोग जूलरी कारोबार से जुड़े हैं, जिनपर इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा?
कई कारोबारियों को चीन और हांगकांग से भुगतान भी नहीं मिला है। वे ग्राहकों से संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं, जो उनके लिए बड़ी चुनौती है। भुगतान ना मिलने के कारण भारतीय कारोबारी अपने छोटे सप्लायर्स को भी भुगतान नहीं कर पा रहे हैं। जिसकी वजह से लोगों का पैसा अटक गया है।