किसका कसूर ;जनता का या व्‍यवस्‍था का…?

राजनांदगांव/08-Oct-2020:- अगर आप के भीतर कुछ अलग करने का जज्बा है तो फ़िर हर मुश्किल आपको बेहतरीन अवसर की तरह लगने लगती है! जी हाँ, इस बात को चरितार्थ किया है कौशल केन्द्र राजनांदगांव के प्रतिभाशाली क्षेत्रीय प्रबंधक श्री रुपेश देवांगन जी ने!

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देश में फ़ैली वैश्विक महामारी के बीच , युवा क्षेत्रीय प्रबंधक श्री रुपेश देवांगन जी ने इस खाली समय का बेहतर सदुपयोग करते हुए अपनी प्रतिभा को सबके सामने निखारा है, आपको बताते चले कि देवांगन जी ने इस दरमियान कई कविताओ की रचना की हैं जबकि इनमें से कुछ तो प्रकाशित भी हो चुकी हैं!
इनकी कविताओ में सामाजिक अस्मिता की झलक साफ़ देखी जा सकती है, मजदूर शीर्षक से लिखी इनकी कविता मे वर्तमान दौर में हो रही घटनाओ का जिक्र है जो उनकी सोच को भी प्रकट करती हैं!


जबकि अर्धनारेश्वर शीर्षक से रचित कविता मे किन्नर समाज के अनछुये पहलुओ के बारे में बताया गया है! किन्नर समाज को हमेशा उपेक्षित नजरिये से देखा गया है, उसी को ध्यान में रखकर इस रचना को बनाया गया है!
क़सूर किसका है जो उनकी अगली कविता है और अब अपनी कविता के माध्यम से सबसे पूछना चाह रहे है कि कसूर किसका हैं… जनता का या व्‍यवस्‍था का जो आप जनता के लिए बहुत से नियम है पर वही राजनेता नियमों से क्यो झुठ जाते है इनके लिए क्या नियम नहीँ बनाया जा सकता क्या इनको पूरी जिंदगी राजनीति करने की छूट रहेगी तो फिर क्यो 62 वर्षों में नौकिरियों से सेवानिवृत्त कर दिया जाता है, क्यो नौकिरियों में शिक्षा माप दण्ड तै है, सब नियम जनता के लिए ही है क्यो इनको 62 में सेवानिवृत्त नही किया जा सकता, क्यो शिक्षा का माप दण्ड तय नही कर सकते क्यो….?
बस ये एक मन मे उठा सवाल है और ऐसे सवाल नजाने कितनो के पास और होंगे!
कसूर किसका है……?

आज एक सवाल मन में है आया
सोचा पूछना जरूर है
देखी कई खामियां राजनीति में
कोई बताएगा किसका कसूर है।

62 की उम्र में सेवानिवृत्ति की रीति है
फिर क्‍यों इस उम्र में भी कुछ की जारी राजनीति है
सरकार कहती है 62 के बाद आराम होना चाहिए
फिर क्‍यों राजनेताओं को इस उम्र के बाद भी काम चाहिए।

हर नौकरी में शिक्षा का मापदण्‍ड तय है
पर साहब इन नेताओं को कहां इस बात का भय है
दोहरे मापदण्‍ड की भेंट चढ़ती आम जनता है
पर नेताओं को इस बात से क्‍या फर्क पड़ता है।

अपना जेब भरने के लिए वो जनता को रूला देगा
नेता जी पद के खातिर नया नियम भी ला देगा
शनै: शनै: विभागों में कमी बताकर नियमों की बदली होती है
फिर क्‍यों इस देश की राजनीतिए इससे अछूती होती है।

अनुकंपा नियुक्ति में ढेर नियमों का ताता है
राजनीति में वंशवाद आराम से चल जाता है
अफसोस सारे नियम इन्‍होने बनाये हैं अपने फायदे को
ताक पर रख चुके हैं सारे नियम और कायदे को।

ऐसे सवालों का पिटारा न जाने कितनों के पास है
किसी की चल रही है तो कोई जीवन के जद्दोजहद से हताश है
इन सारे सवालो का जवाब कौन देगा
हो रहा है खिलवाड़ए तो जवाबदारी कौन लेगा।

इन बातों को सोचने के लिए आज
हर जनता भी मजबूर है
पर जनता तो जनता है पूछेगा ही
कोई बताएगा किसका कसूर है।

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