
दुर्ग। भारती विश्वविद्यालय, दुर्ग के संस्कृत विभाग के तत्वावधान में राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार का विषय ‘भारतीय ज्ञान परंपरा में शिक्षा और मूल्य’ था। इस राष्ट्रीय वेबिनार में डाॅ. दिव्या देशपाण्डे, असिस्टेंट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, शासकीय दिग्विजय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, राजनांदगांव ने मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित किया।

उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा कि भारत की एक अक्षुण्य एवं समृद्ध ज्ञान परंपरा रही है। भारतीय ज्ञान परंपरा के विविध आयामों में सर्वाधिक प्रमुख आयाम शिक्षा एवं मूल्य है जो इस परंपरा का आधार है। उन्होंने कहा कि ‘तत्कर्म यन्न बंधाय सा विद्या या विमुक्तये’ अर्थात कर्म वही है जो बंधनों से मुक्त करे और विद्या वही है जो मुक्ति का मार्ग दिखाए।

भारतीय मूल्यों की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि मूल्य ही संस्कृति को वैशिष्ट्य प्रदान करते हैं। भारतीय दर्शन के विकास के प्रथम सोपान से ही भारतीय मूल्य परंपरा का बीज रूप प्राप्त होना शुरू हो जाता है। उन्होंने बताया कि भारतीय मूल्यों का आधार आदर्श जीवन पद्धति, सर्वे भवन्तु सुखिनः, सात्विकता, आध्यात्मिक परिदृश्य में आत्मदर्शन की समग्रता और व्यावहारिक जीवन मूल्य शामिल हैं।
कार्यक्रम का संचालन एवं विषय प्रवर्तन संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. कृष्णदत्त त्रिपाठी ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डाॅ. प्रतिभा कुरूप, अधिष्ठाता, फिजिकल साइंसेस ने किया। इस अवसर पर विभिन्न संकायों के संकायाध्यक्ष, विभागों के विभागाध्यक्ष, प्राध्यापकगण, शोधार्थी, प्रतिभागी छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।