राजनांदगांव 11 नवम्बर 2021। जिले में धान फसल की कटाई प्रारंभ हो गई है। जिन क्षेत्रों में धान के बाद रबी फसल लिया जाता है वहां किसान धान कटाई के बाद खेत में पड़े पराली को जला देते है। इसके संबंध में किसानों को भ्रम है कि पराली जलाने के बाद अवशेष (राख) से खेत को खाद मिलेगा तथा खेत साफ हो जाएगी। लेकिन यह गलत है, क्योंकि पराली जलाने से भूमि की उपजाऊ क्षमता तथा लाभदायक कीट खत्म हो जाते हैं। इससे वायु प्रदूषण भी होता है। जिससे मनुष्य, पशु, पक्षी को कई तरह की बीमारियां भी होती है। जिसका उदाहरण दिल्ली, पंजाब, हरियाणा जैसे शहरों में कुछ वर्षों से देखने को मिल रहा है।
धान की पराली जलाने से होने वाले नुकसान –
एक टन धान पराली जलाने से हवा में 3 किलोग्राम कार्बन, 513 किलोग्राम कार्बन डाई-आक्साईड, 92 किलोग्राम कार्बन मोनो आक्साईड तथा 250 किलोग्राम राख घुल जाती है। धान पराली जलाने से वायु प्रदुषित होने से आँखों में जलन एवं सांस संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। पराली जलाने से भूमि की उपजाऊ क्षमता लगातार घट रही है। इस कारण भूमि में 80 प्रतिशत तक नाईट्रोजन, सल्फर एवं 20 प्रतिशत अन्य पोषक तत्व की कमी आ रही है। मित्र कीट की मृत्यु होने से नई-नई बीमारियां उत्पन्न होती है। एक टन धान पराली जलने से 5.5 किलोग्राम नाईट्रोजन, 2 किलोग्राम फास्फोरस और 1.2 किलोग्राम सल्फर जैसे पोषक तत्व नष्ट हो जाते है। पशुओं के लिए वर्ष भर चारा आपूर्ति की समस्या बन जाती है।
फसल अवशेष, पराली, नरवाई जलाने पर आर्थिक दंड –
आवास एवं पर्यावरण विभाग द्वारा वायु (प्रदुषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम 1981 की धारा 19 (5) के अंतर्गत फसल अपशिष्ट को जलाया जाना प्रतिबंधित किया गया है। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के तहत खेती में कृषि अवशेषों को जलाये जाने पर प्रतिबंध लगाया गया है। जिसके तहत पराली जलाने वाले व्यक्ति पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। आर्थिक दंड के रूप में 2 एकड़ से कम खेत पर 2500 रूपए, 2 से 5 एकड़ खेत पर 5 हजार रूपए तथा 5 एकड़ से अधिक पर 15 हजार रूपए जुर्माना लगाया जाएगा।
पराली का निर्मित गौठान में दान –
जिले में सुराजी गांव योजना के तहत गौठान निर्मित किये गये है जिसमें धान पराली का दान करें, जिससे गौठान में वर्षभर पशुओं के लिए चारा आपूर्ति बनी रहें। पैरादान करने के लिए संबंधित गौठान समिति व ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी से सम्पर्क कर सकते है।
पराली का प्रबंधन –
स्टा मल्चर मशीन की सहायता से पराली को गठ्ठे में एक कर उपयोग कर सकते हंै। वेस्ट डी-कम्पोजर के 200 लीटर प्रति एकड़ घोल को फसल कटाई उपरांत खेतों में पड़े अवशेषों के उपर छिड़काव कर सड़ा सकते हंै। जिससे खेतों में ही पोषक तत्व प्रबंधन किया जा सकता है। वेस्ट डी-कम्पोजर बनाने के लिए 200 लीटर पानी में 2 किलोग्राम गुड़ मिलाकर वेस्ट डी-कम्पोजर का 20 ग्राम का घोल डालकर 6 से 7 दिन के लिए ढककर रखे देते हैं। प्रतिदिन दो बार डंडे से उसे अच्छी तरह मिलाना चाहिए। धान के पराली का यूरिया से उपचार करके पशु चारे के रूप में उपयोग कर सकते हंै।