
– 54620 हेक्टेयर क्षेत्र में धान के बदले अन्य फसलों का हुआ विस्तार
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– जिला प्रशासन द्वारा जल संरक्षण के दृष्टिगत बहुआयामी रणनीति अपनाई जा रही
– 27 ग्रामों के 876 किसानों की कृषि भूमि की सिंचाई क्षमता में हुई वृद्धि
राजनांदगांव 04 अप्रैल 2025। राजनांदगांव जिले में जल संकट की स्थिति गंभीर समस्या बन सकती है। यदि इसके लिए समय रहते समन्वित प्रयास नहीं किए गए। गिरते भूजल स्तर, अनियंत्रित सिंचाई तकनीकें और बढ़ती जनसंख्या जल संसाधनों पर अत्यधिक दबाव डाल रही हैं। जल संरक्षण के दृष्टिगत जिला प्रशासन द्वारा बहुआयामी रणनीति अपनाई जा रही है, जिसमें शासकीय विभागों के साथ-साथ गैर-शासकीय संस्थाएं, जनप्रतिनिधि और पंचायत विभाग की मैदानी इकाइयों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की गई है। भू-जल स्तर में निरंतर गिरावट, नलकूप आधारित सिंचाई पद्धति का अधिक उपयोग, वर्षा आधारित खेती की बढ़ती निर्भरता एवं जल संसाधनों का असंतुलित उपयोग जल संकट के प्रमुख कारण है। जिला प्रशासन द्वारा जनसहभागिता से मिशन जल रक्षा अभियान चलाया गया है। कलेक्टर श्री संजय अग्रवाल के मार्गदर्शन पर जल संरक्षण के लिए सतत कार्य किए जा रहे है। कलेक्टर के नेतृत्व में तथा जिला पंचायत सीईओ सुश्री सुरूचि सिंह के निर्देशानुसार जिला पंचायत की टीम, कृषि विभाग, उद्यानिकी, जल संसाधन एवं अन्य विभागों द्वारा जल संरक्षण के लिए निरंतर कार्य किया जा रहा है। किसानों के लिए फसल संगोष्ठी का आयोजन भी किया गया। किसानों को फसल विविधीकरण के लिए प्रोत्साहित करने के प्रयासों का कारगर परिणाम मिला है। बड़ी संख्या में किसान फसल चक्र परिवर्तन एवं धान के बदले कम पानी की आवश्यकता वाले फसल लघु धान्य फसल, दलहन-तिलहन एवं अन्य फसलों को अपनाने के लिए आगे आए हैं।
प्रशासनिक प्रयास और जल संरक्षण के उपाय-
जिला प्रशासन और कृषि विभाग द्वारा जल संकट से निपटने के लिए विभिन्न जल संरक्षण संरचनाओं का निर्माण किया जा रहा है। विशेष रूप से जल स्रोतविहीन ग्रामों में नालों का चयन कर सतही सिंचाई को प्रोत्साहित करने हेतु जिले में विभिन्न योजनाओं के अभिसरण के साथ 27 चेकडैम्स व स्टॉपडैम्स बनाए जा रहे हैं।
महत्वपूर्ण परियोजनाएं-

जिले में वर्ष 2023-24 में विभिन्न योजनाओं के अभिसरण के साथ 15 ग्रामों में चेकडैम्स का निर्माण किया गया। इससे 710 हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई क्षमता बढ़ी और 562 किसानों को लाभ मिला है। वर्ष 2024-25 में विभिन्न योजनाओं के अभिसरण के साथ 12 जल स्रोतविहीन ग्रामों में चेकडैम्स बनाए गए, जिससे 362 हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई क्षमता में वृद्धि हुई और 314 किसानों को लाभ मिला है।
जल संरक्षण के सकारात्मक परिणाम-
जल संरक्षण के सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं। जिले में जल संरक्षण से 14580 हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं की खेती संभव हुई है, 3362 हेक्टेयर क्षेत्र में मक्का की खेती का विस्तार हुआ है, 36678 हेक्टेयर क्षेत्र में चना और अन्य दलहनी-तिलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ा है।
तीन चरणों में जल संरक्षण योजना –

तीन चरणों में जल संरक्षण योजना का संचालन किया जा रहा है। वर्षा जल संचयन को प्राथमिकता दी गई। संचित जल को रोकने के लिए चेकडैम्स और स्टॉपडैम्स का निर्माण किया गया है। संरक्षित जल को भूमि में सोखने की व्यवस्था की गई है।
स्थायी समाधान की ओर कदम-
जल संरक्षण संरचनाओं से वर्षा जल की नलों में ही रोकथाम संभव हुई, जिससे जल का संचयन 7-8 माह तक किया जा सकता है। इससे किसानों को सिंचाई सुविधा प्राप्त हुई, जिससे सब्जियों की खेती और खरीफ फसलों का क्षेत्र भी बढ़ा एवं किसानों द्वारा निकाले जा रहे जमीन के अंदर से पानी की निर्भरता कम होकर संरक्षित किए गए पानी का उपयोग किया गया। जिससे जमीन के अंदर के पानी की निर्भरता कम हुई है।
सामुदायिक भागीदारी और भविष्य की योजनाएं-
जिला प्रशासन द्वारा जल संरक्षण केवल तकनीकी हस्तक्षेप तक सीमित न रहे, बल्कि सामुदायिक भागीदारी, फसल विविधीकरण और सतत विकास के साथ एकीकृत हो। जल संरक्षण केवल जल संचयन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आजीविका संवर्धन, खाद्य सुरक्षा और जलवायु अनुकूलन की दिशा में भी एक स्थायी पहल बन रही है।