राजनांदगांव, 9 जून 2021- सुहागिन महिलाओं का पावन पर्व वट सावित्री बुधवार को पारंपरिक विधि विधान के साथ मनाया गया। परंपरा के अनुसार सुहागिन महिलाओं ने उपवास रखा और वट वृक्ष की निष्ठापूर्वक पूजा-अर्चना कर अपने पति के दीर्घायु होने तथा घर परिवार के सुख समृद्धि की कामना की।

सुबह से ही महिलाएं स्थानीय शीतला मंदिर में पहुंचकर पूजा-अर्चना शुरू की। पर्व के चलते महिलाओं ने वट वृक्ष पर धागा बांधते हुए परिक्रमा की। साथ ही सावित्री और सत्यवान की कथा का वाचन भी किया। महिलाओं में पर्व को लेकर उत्साह भी नजर आया। जेष्ठ अमावस्या पर आज बुधवार को वट सावित्री व्रत पर्व को पारंपरिक रूप से महिलाओं ने मनाया। इस पर्व के लिए महिलाओं ने बाजार में पहुंचकर पूजा-सामग्रियों की खरीदी की थी। बताया गया है कि वट सावित्री व्रत को सौभाग्य देने वाला पर्व माना गया है। महिलाएं सावित्री और सत्यवान का स्मरण कर इस व्रत को धारण की।
आज महिलाओं ने वट वृक्ष के नीचे एकत्र होकर विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर प्रसादी ग्रहण की। बुधवार को महिलाओं ने पति की दीर्घायु तथा स्वास्थ्य की कामना को लेकर वट सावित्री की पूजा-अर्चना कर व्रत धारण की।
कब और क्यों मनाया जाता है ये व्रत? इस व्रत को ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन अपने मृत पति को पुन: जीवित करने के लिए सावित्री ने यमराज से याचना की थी जिससे प्रसन्न होकर यमराज ने उन्हें उनके पति सत्यवान के प्राण लौटा दिए थे। इसी के साथ यमराज ने सावित्री को तीन वरदान भी दिए थे।
इन्हीं वरदान को मांगते हुए सावित्री ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कर अपने पति को जीवित करवा दिया था। बताया जाता है कि यम देवता ने सत्यवान के प्राण चने के रूप में वापस लौटाए थे। सावित्री ने इस चने को ही अपने पति के मुंह में रख दिया था जिससे सत्यवान फिर से जीवित हो उठे थे। यही वजह है कि इस दिन चने का विशेष महत्व माना गया है।
वट सावित्री व्रत पूजन सामग्री: बांस की लकड़ी से बना बेना (पंखा), अगरबत्ती या धूपबत्ती, लाल और पीले रंग का कलावा, पांच प्रकार के फल, बरगद पेड़, चढ़ावे के लिए पकवान, अक्षत, हल्दी, सोलह श्रंगार, तांबे के लोटे में पानी, पूजा के लिए साफ सिन्दूर और लाल रंग का वस्त्र पूजा में बिछाने के लिए।