लोकवाणी के सभी श्रोताओं को नमस्कार, जय जोहार।
– साथियों, लोकवाणी कार्यक्रम की बीसवीं कड़ी के प्रसारण का इंतजार आज समाप्त हो रहा है। आज के प्रसारण का विषय है- ‘आदिवासी अंचलों की अपेक्षाएं और विकास’।
– इस अवसर पर माननीय मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी और आप सभी श्रोताओं का हार्दिक स्वागत है, अभिनंदन है, जय जोहार।
माननीय मुख्यमंत्री जी का जवाब
– सब्बो सियान मन, दाई-दीदी, संगवारी अउ भतीजा-भतीजी मन ल, मोर डहर ले जय जोहार, जय सियाराम।
– आप जम्मो मन ल हरेली तिहार के गाड़ा-गाड़ा बधाई। अब्बड़ अकन सुभकामना।
– हमर छत्तीसगढ़ी संस्कृति के अनुसार हरेली ह, साल के पहली तिहार होथे।
– आज के दिन अपन गांव-घर म जाके, गोठान ल लीप-पोत के बने तैयार करे जाथे, अउ गउ माता के पूजापाठ करे जाथे।
– गाय-बइला ल लोंदी खवाय के परंपरा घलो हे।
– हरेली, छत्तीसगढ़ी रोटी-पिठा खाए के तिहार हवय, खेलकूद, नाचा अउ मनोरंजन के तिहार घलोक हवय।
– घर-अंगना, मैदान-चौपाल म, हमर परंपरा अनुसार ग्रामीण खेल खेले जाथे।
– गेड़ी म चढ़ के ठाठ से चले जाथे।
– हरेली तिहार म खेती-बारी के अउजार नांगर-बक्खर, हंसिया- टंगिया, कुदारी-रापा के साफ-सफाई अउ पूजापाठ करे जाथे।
– लोगन मन नाचत-गावत ये तिहार ल मनावत हवय, त एक तरह से खुसी अउ समृद्धि ल नेवता देवत हवय।
– हमर सरकार बने के तुरंत बाद, पहली बार छत्तीसगढ़िया भावना ल ध्यान म रख के हरेली तिहार सहित पांच तिहार के सरकारी छुट्टी घोषित करे गे हे। ओखर सेती सहर म अउ दूसर जगह जाके काम-बुता करइया मन ल मउका मिले हे, के अपन गांव-खेत-खार-खलिहान-गौठान, नंदिया-तरिया कोती जाए अउ गांव म घूम-घूम के हरेली तिहार मनाए।
– ये छुट्टी के बेवस्था करे ले, लोगन मन अपन लोग-लइका संग हरेली के दिन, गांव जावत हवय, अउ अपन संस्कृति ल तीर ले देखत हवय।
– ये महिना तिहार-बार के महिना हे, तेखर सेती मैं ह, आप सब्बो मन ल 13 अगस्त के नागपंचमी, 15 अगस्त के स्वतंत्रता दिवस, 21 अगस्त के ओणम, 22 अगस्त के राखी, 28 अगस्त के कमरछठ हलषष्ठी अउ 30 अगस्त के आठे तिहार याने कृष्ण जन्माष्टमी के, पहली ले बधाई घलोक देवत हंव। सावन महिना में शंकर भगवान के पूजापाठ के महीना हवय, ओकरो बहुत-बहुत बधाई।
– माननीय मुख्यमंत्री जी। प्रदेश के 146 में से 85 विकासखण्डों में आदिवासी जनसंख्या की बहुलता है। हमारा आदिवासी समाज, अपनी संस्कृति और प्रकृति से बहुत प्यार करता है। इसलिए आदिवासी अंचलों में विकास की अपेक्षाएं अन्य क्षेत्रों की तुलना में कुछ अलग ही होती हैं। आइए सुनते हैं, इस संबंध में कुछ विचार और फिर आपका जवाब।
1.सतीश उपाध्याय
माननीय मुख्यमंत्री जी, मैं आदिवासी अंचल, कोरिया जिले से बोल रहा हंू। सतीश उपाध्याय नाम है। मनेन्द्रगढ़ कोरिया में लाखों-वर्ष पुराना मेरीन फॉसिल्स पार्क इतने दिनों से पड़ा हुआ था, लेकिन आपके निर्देशन से अभी बायोडायवर्सिटी हेरीटेज साइट में काम शुरू हो गया है। माननीय मुख्यमंत्री जी, मनेन्द्रगढ़ में जैव विविधता पार्क का भी चिन्हांकन किया गया है और कोरिया जिले में सबसे प्रमुख बात यह है कि छत्तीसगढ़ के पहले वन प्रदर्शन प्रक्षेत्र की भी आधारशिला रखी गई है, जो 21 एकड़ क्षेत्रफल में बनेगा और आने वाले समय में ‘मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना’ के तहत और कोरिया कृषि विज्ञान केन्द्र के सहयोग से फलोद्यान, वनोपज, इमारती तथा जलाऊ लकड़ी के अच्छे स्रोत मिलेंगे। 28 जुलाई को नई तहसील पटना के गठन का प्रकाशन राजपत्र मंे हो गया है। आपने कोरिया प्रवास के दौरान वादा किया था, वह पूर्ण हुआ। कोरिया की जनता आपको बहुत-बहुत साधुवाद देती है।
माननीय मुख्यमंत्री जी का जवाब
– अब आदिवासी अंचल की अपेक्षा और विकास की बात शुरू हो रही है तो सबसे पहले मैं आदिवासी भाई-बहनों को कल विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर अग्रिम बधाई देता हूं।
– मैं बताना चाहता हूं कि हमने सरकार में आने के बाद, प्रदेश में पहली बार विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है।
– हमारा मानना है कि इससे हमारे आदिवासी भाई-बहनों, बच्चों और सभी लोगों को आदिवासी समाज की परंपराओं, संस्कृतियों और उनके उच्च जीवन मूल्यों को समझने का अवसर मिला है।
– इससे आदिवासी समाज और आदिवासी अंचलों के आयोजनों में सभी समाज के लोगों की भागीदारी भी सुनिश्चित होगी और सभी मिलकर समरसता और सौहार्द्र का खुशनुमा वातावरण बनाने में सफल होंगे।
– अब आता हूं सतीश जी के सवाल पर।
– आपने कोरिया जिले की पटना तहसील के गठन की बात कही। मैं आपको बताना चाहता हूं कि हमने ढाई वर्षों में जो 29 नई तहसीलें और 4 नए अनुविभाग गठित किए हैं, उनमें से अधिकतर आदिवासी अंचल में ही हैं।
– कोरिया जिले में पटना के साथ चिरमिरी और केल्हारी तहसीलें भी गठित की गई हैं। इसके अलावा कबीरधाम जिले में रेंगाखार-कला, सरगुजा जिले में दरिमा, बलरामपुर-रामानुजगंज जिले में रामचंद्रपुर, सामरी, सूरजपुर जिले में लटोरी, बिहारपुर, जशपुर जिले में सन्ना और सुकमा जिले में गादीरास आदि प्रमुख हैं। इसी तरह चार नवीन अनुविभागों में दंतेवाड़ा का बड़े बचेली और बस्तर का लोहंडीगुड़ा शामिल है।
– बरसों पुरानी मांग को ध्यान में रखते हुए हमने गौरेला-पेण्ड्रा- मरवाही को जिला ही नहीं बनाया बल्कि आदिवासी बहुल इस आबादी वाले क्षेत्र को उनका हक भी दिया।
– महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी से लेकर मनमोहन सिंह तक सभी महान नेताओं ने सत्ता के विकेन्द्रीकरण पर जोर दिया था। इसकी वजह थी कि नई प्रशासनिक इकाइयों के गठन से लोगों को अपनी भूमि, खेती-किसानी से संबंधित काम, बच्चों की पढ़ाई, नौकरी या रोजगार से संबंधित कामों के लिए बहुत दूर का सफर न करना पड़े। दूर जाकर रात न रुकना पड़े। इससे उनका पैसा भी बचे और समय भी। इससे उनके जीवन में आने वाली सुविधा से सुख और सफलता के नए रास्ते खुलें। सरकारी योजनाओं का बेहतर अमल हो। हमने इसे ही प्रशासनिक संवेदनशीलता का मूलमंत्र बनाया।
– जहां तक मेरीन फॉसिल्स पार्क/जैव विविधता पार्क का सवाल है तो सिर्फ कोरिया ही नहीं, बल्कि हर जिले में हम अपनी ऐतिहासिक और पुरातात्विक धरोहर को सहेजने के सार्थक प्रयास कर रहे हैं।
– आपने ‘मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना’ के बारे में पूछा है तो बताना चाहता हूं कि इस योजना को मैं आने वाले समय में स्थानीय लोगों, आदिवासी और वन आश्रित परिवारों की आय के बहुत बड़े साधन के रूप में देख रहा हूं।
– खुद लगाए वृक्षों से इमारती लकड़ी की कटाई और फलों को बेचकर, लोगांे की आय बड़े पैमाने पर बढ़ेगी। इस संबंध में नियम-कानून बनाए गए हैं।
– निजी लोगों को ही नहीं, बल्कि पंचायतों और वन प्रबंधन समितियों को भी पेड़ लगाने और काटने के अधिकार दिए गए हैं। इससे एक ओर जहां बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण के लिए लोग प्रोत्साहित हांेगे, वहीं हमारा छत्तीसगढ़ वन तथा वनोपज के रूप में अपने आपको और भी अधिक सशक्त बना सकेगा।
2. विनय कुमार मरकाम
मैं विनय कुमार मरकाम बोल रहा हूं। डौंडी ब्लॉक से बोल रहा हूं। बालोद जिला से। हां सर अभी जो आदिवासियों के विकास के लिए जो अपेक्षाएं और विकास के लिए जो विषय मिला है। सर, मैं एक युवा ही बोल रहा हूं, जो आदिवासी क्षेत्र से सम्बन्ध रखता हूं और यहां पर हमारी जो मूलभूत आवश्यकताएं हैं जैसे कि बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य, दूसरी जो आवश्यकता होगी, जो मूलभूत आवश्यकता पूर्ण होगी, उसके बाद हमारे लिए बेहतर भविष्य का विकास किया जा सकता है। स्कूल है, स्वास्थ्य है, प्राथमिक शिक्षा की कमी है, व्यावसायिक परीक्षा हो गया, रोजगार हेतु इसकी ज्यादा आवश्यकता है। सर, स्कूल में शिक्षकों की कमी है।
3. सोमनाथ
– मैं सोमनाथ, दरभा विकासखण्ड का रहने वाला हूं। माननीय मुख्यमंत्री जी, आप कई बार कहते हैं कि शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर आपका विशेष फोकस रहेगा। आदिवासी अंचलों में इन चीजों को लेकर आप क्या कर रहे हैं और उसका लाभ हमें किस तरह से मिलेगा? कृपया यह बताने का कष्ट करें।
माननीय मुख्यमंत्री जी का जवाब
– विनय जी/सोमनाथ जी।
– निश्चित तौर पर आदिवासी अंचलों में स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार सबसे बड़ी जरूरत है।
– हमने सरकार में आते ही इसी प्राथमिकता से काम शुरू किया।
– स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ी जरूरत अस्पतालों और सुविधाओं की होती है। हमने डीएमएफ मद से ये जरूरतें पूरी करने का फैसला किया। इसके लिए आवश्यक नियम बनाए हैं। सीएसआर और अन्य मदों की राशि भी इन्हीं प्राथमिकताओं के लिए खर्च करने की रणनीति अपनाई है।
– हमारी नई व्यवस्था के कारण बीजापुर, दंतेवाड़ा और जगदलपुर में अब उच्च स्तर की चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हो गई हैं। सुकमा जिले में भी बड़े स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं, जिसके नतीजे जल्दी आएंगे।
– सामान्य जिलों से अधिक संख्या में और अधिक विशेषज्ञता वाले डॉक्टर अब बस्तर में हैं। इसके कारण आपात स्थितियों में जिन मरीजों को रायपुर भेजना पड़ता था और उसमें जो समय लगता था, उसकी बचत हुई और आपदा में होने वाली मृत्यु की संख्या में भी बहुत कमी आई है।
– हमने देखा कि आदिवासी अंचलों के मरीज हाट-बाजार तक जाते हैं लेकिन अस्पताल नहीं पहुंच पाते। इसे समझते हुए हमने तय किया कि अस्पताल ही क्यों न हाट-बाजार पहंुचाए जाएं।
– इस तरह ‘एक पंथ-दो काज’ की तर्ज पर हमारे आदिवासी भाई-बहनों का उपचार हाट-बाजारों में होने लगा।
– इसका लाभ 11 लाख से अधिक लोगों को मिल चुका है।
– मुख्यमंत्री बनने के बाद मैं यह देखकर हैरान रह गया था कि छत्तीसगढ़ में पांच वर्ष से कम उम्र के 37.7 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार थे और 15 से 49 वर्ष तक की 47 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया अर्थात खून की कमी से ग्रस्त थीं। आदिवासी जिलों में हालत और भी खराब थी।
– हमने मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान शुरू किया, जिसमें डीएमएफ और जनभागीदारी के योगदान को बढ़ावा दिया।
– बच्चों को दूध, अण्डा, स्थानीय प्रचलन के अनुसार पौष्टिक आहार दिया, जिसके कारण कुपोषण और एनीमिया की दर में तेजी से कमी आ रही है।
– बस्तर में मलेरिया के कारण स्थिति गंभीर थी। हमने ‘मलेरिया मुक्त बस्तर’ अभियान शुरू किया, जिसके तहत हमारे स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने घर-घर और जंगल-जंगल जाकर मलेरिया के खिलाफ जीत दर्ज कराई है।
– एक साल में बस्तर संभाग में मलेरिया का प्रकरण 45 प्रतिशत और सरगुजा संभाग में 60 प्रतिशत कम हो जाना, एक सुखद खबर है।
– यूएनडीपी और नीति आयोग ने हमारे मलेरियामुक्त बस्तर अभियान की तारीफ करते हुए बीजापुर जिले में मलेरिया में 71 प्रतिशत तथा दंतेवाड़ा में 54 प्रतिशत तक कमी करने की सफलता को बेस्ट प्रेक्टिस के रूप में सराहा है और अन्य आकांक्षी जिलों को भी इस अभियान को अपनाने की सलाह दी है।
– अच्छी सेहत के लिए विशेष रणनीतियों के अलावा राज्य स्तर पर जो सुधार के प्रयास चल रहे हैं, उनका लाभ भी आदिवासी अंचलों को मिल रहा है।
– शिक्षा के लिए हमने संकटग्रस्त क्षेत्रों पर ज्यादा फोकस किया। जिसके कारण सुकमा जिले के जगरगुंडा में 13 वर्षों से बंद स्कूल बीते साल खुल चुका है। कुन्ना में नक्सलवादियों ने जो भवन उड़ा दिया था, उसका पुनर्निर्माण कराके मैंने लोकार्पण किया। अभी नए सत्र में दंतेवाड़ा जिले के मासापारा-भांसी में भी 6 सालों से बंद स्कूल अब खुल गया है।
– नक्सलियों ने पहले इन स्कूलों को तोड़ा था, अब हमारी नई नीति का ही असर है कि आत्मसमर्पित नक्सलियों ने इन स्कूलों को बनाने में योगदान दिया है।
– कोरोना काल में पढ़ाई तुंहर पारा अभियान के तहत लाखों बच्चों को उनके गांव-घर-मोहल्लों में खुले स्थानों पर भी पढ़ाया गया।
– प्रारंभिक कक्षाओं में बच्चों को मातृभाषा में समझाना अधिक आसान होता है इसलिए हमने 20 स्थानीय बोली-भाषाओं में पुस्तकें छपवाईं, जिसका लाभ आदिवासी अंचलों में मिला।
– 20 साल बाद प्रदेश में स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति के ठोस प्रयास शुरू किए गए। कुछ बाधाएं भी आई थीं लेकिन अब सभी 14 हजार 580 शिक्षक-शिक्षिकाओं की नियुक्ति आदेश दे दिए गए हैं।
– इससे आदिवासी अंचलों में भी स्थायी शिक्षकों की कमी दूर हो जाएगी।
– आदिवासी अंचलों में मॉडल छात्रावासों तथा आश्रमों का विकास किया जा रहा है।
– माननीय मुख्यमंत्री जी, आदिवासी समाज अपने जल-जंगल- जमीन और परंपराओं से बेहद प्यार करता है। बड़े से बड़े संकट में भी वह अपना घर नहीं छोड़ना चाहता। आपने इस बात को गंभीरता से समझते हुए निश्चित तौर पर आदिवासी अंचलों में विकास की नई प्रणाली शुरू की है।
– इस संबंध में हमें बहुत से विचार मिले हैं। आइए सुनते हैं, उनमें से कुछ की आवाजें।
4 यशोदा पुजारी
– माननीय मुख्यमंत्री जी को मेरा नमस्कार। मेरा नाम यशोदा पुजारी, ग्राम पंचायत चेरपाल। माननीय मुख्यमंत्री जी, आप ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने आदिवासी समुदाय से, जंगल में रहने वाले लोगों से यह पूछा है कि हमें क्या चाहिए? मेरा मानना है कि जो हमें चाहिए वो नहीं दिए जाने के कारण ही बस्तर के विकास में रुकावटें आई थीं। लेकिन खुशी की बात है कि आपने हमारी नजरों से देखा और हमारी आवाज को महत्व दिया। आज जिस तरह से हमारी संस्कृति, देवगुड़ी, घोटुल, हमारी बोली- भाषाओं, हमारी वनोपजों, हमारी जमीनों और हमारे रोजगार को लेकर आप योजनाएं बना रहे हैं और उन्हंे अमल में ला रहे हैं, उससे लगने लगा है कि हम वास्तव में छत्तीसगढ़ के नागरिक हैं और छत्तीसगढ़ सरकार को हमसे प्यार है।
5 अजय बघेल
– माननीय मुख्यमंत्री जी, मेरा नाम अजय बघेल है। मैं ग्राम पोलमपल्ली जिला सुकमा से बोल रहा हूं। माननीय मुख्यमंत्री जी, बरसों से हम लोग यह सुनते-सुनते थक गए थे कि आदिवासी लोग वनोपज बीनने के अलावा कोई काम नहीं कर सकते और इसी वजह से उनका विकास नहीं होता। वास्तव में हमारे सामने किसी सरकार ने दूसरे विकल्प रखे ही नहीं थे। आपने बहुत से लोगों को रोजगार और स्वरोजगार से जोड़कर रोजगारी और कारोबारी भी बना दिया है। मैं आपकी सोच के लिए धन्यवाद देता हूं और चाहता हूं कि इस बारे में आप हमें विस्तार से बताएं।
6 दयाल सिंह
– नमस्कार माननीय मुख्यमंत्री महोदय जी। मैं दयाल सिंह बैगा ग्राम बैरन जिला कबीरधाम से बात करत हवं। महोदय जी, छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल म जेन उपज के पैदावार होथे ओकर सम्बन्ध में आपके का राय हे ? का अइसन फसल घलो हे का जेमा हमर छोड़, पूरा प्रदेश घलो गर्व कर सके? अइसन उपज ल बढ़ावा देके आदिवासी अंचल म स्वालम्बन व खुशहाली के नवा रद््दा घलो खुल सकत हे? धन्यवाद, महोदय जी।
माननीय मुख्यमंत्री जी का जवाब
– नमस्कार, यशोदा जी, अजय जी, दयाल जी।
– जब छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ था तब हम सबको लगा था कि अब आदिवासी अंचलों और शेष क्षेत्रों के बीच जो विकास का अंतर है, उसे दूर कर लिया जाएगा।
– लेकिन हमने देखा कि विगत 15 वर्षों में यह अंतर और भी अधिक बढ़ गया।
– इसकी वजह क्या थी? इसकी वजह थी आदिवासी समाज और आदिवासी अंचलों की जरूरतों को समझे बिना, मंत्रालय में बैठकर योजनाएं बनाना और उन्हें जनता पर लाद देना।
– हमने यह समझ लिया कि सोच बदले बिना, तरीका बदले बिना, आदिवासी अंचलों का भला नहीं हो सकता।
– इसलिए हमने सबसे पहले विश्वास जीतने की बात की।
– इसके लिए निरस्त वन अधिकार पट्टों के दावों की समीक्षा, जेल में बंद आदिवासियों के प्रकरणों की समीक्षा कर अपराध मुक्ति, बड़े उद्योग समूह के कब्जे से आदिवासियों की जमीन वापस लौटाने का निर्णय, तेंदूपत्ता संग्रहण दर 2500 रुपए से बढ़ाकर 4 हजार रुपए प्रति मानक बोरा करने का निर्णय लिया।
– इन शुरुआती फैसलों से ही आदिवासी अंचलों में सरकार और व्यवस्था के प्रति विश्वास का नया दौर शुरू हो गया।
– हमने वनोपज को समर्थन मूल्य पर खरीदने के बारे में बहुत तेजी से निर्णय लिए, जिसके कारण 7 से बढ़ाकर 52 वनोपज को समर्थन मूल्य पर खरीदने की व्यवस्था हो गई।
– हमने पुरानी दरों को भी बदला जिसके कारण वनोपज संग्रह से ही 500 करोड़ रुपए से अधिक अतिरिक्त सालाना आमदनी का रास्ता बन गया।
– अनुसूचित क्षेत्रों में कोदो, कुटकी, रागी जैसी फसलों को भी समर्थन मूल्य पर खरीदने के इंतजाम किए हैं तथा लाख को कृषि का दर्जा दिया है।
– वन अधिकार मान्यता पत्रधारी परिवारों के खेतों में उपजे धान को भी समर्थन मूल्य पर खरीदने की व्यवस्था की गई, वहीं इन्हें ‘मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना’ से भी जोड़ दिया है।
– वनोपज संग्रहण में महिला स्वसहायता समूहों को जोड़ने के प्रयोग में बहुत बड़ी सफलता मिली है।
– मुझे यह कहते हुए बहुत खुशी होती है कि हम जितना आगे बढ़ते हैं, उससे अधिक रफ्तार से आदिवासी भाई-बहन आगे बढ़ रहे हैं।
– इतने कम समय में आदिवासी अंचलों के उत्पाद बाजार में अपना नाम, पहचान और पकड़ बनाने लगे हैं।
– बस्तर का चार-चिरौंजी-काजू-कॉफी, इमली, माड़िया या रागी, दंतेवाड़ा का कड़कनाथ, सुकमा-कोण्डागांव का तिखुर, जिमी कांदा, तीरथगढ़ का पपीता, कांकेर का शरीफा-सीताफल, सल्फी-पदर की काली मिर्च, जशपुर की चाय और कटहल, मैनपाट का टाऊ, सूरजपुर का काला गेहूं, सरगुजा का ब्राउन राइस, देवभोग का विष्णुभोग चावल, सरगुजा का जवाफूल चावल, लुड़ेग का टमाटर आदि ऐसे उत्पाद बन गए हैं, जो अपने अनोखे स्वाद के साथ ही बेहतरीन गुणों के लिए भी पहचाने जाते हैं।
– हमने इनके उत्पादन और मार्केटिंग के लिए व्यावसायिक तरीके से काम शुरू किया है, जिसका लाभ बड़े पैमाने पर मिलेगा।
– जहां तक आदिवासी संस्कृति और आदिवासी आस्था केन्द्रों के विकास का सवाल है तो आपने देखा होगा कि देवगुड़ी और घोटुल स्थलों के विकास के लिए भी हमने योजना बनाकर काम शुरू किया है। आदिवासी संस्कृति के विभिन्न घटकों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
– प्रदेश में पहली बार अंतरराष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन भी हमने किया था। इस तरह समग्र रूप से प्रयास किए जा रहे हैं।
– माननीय मुख्यमंत्री जी, आदिवासी अंचलों में अधोसंरचना विकास को लेकर कुछ दुविधाएं लंबे समय से प्रचलित हैं। इसके बारे में हकीकत जानने के लिए हमारे कुछ श्रोताओं ने अपने विचार रखे हैं। बोदागुड़ा बस्तर से क्षीर सागर की आवाज में सुनते हैं, उनके विचार।
7 क्षीर सागर, बोदागुड़ा जिला बस्तर
– माननीय मुख्यमंत्री जी असन मान्तोर आइकी अधोसंरचना चो विकास सवाए प्रकार चो विकास चो जननी आए, मान्तर आमचो बस्तर ने कोनी-कोनी लगे सड़क बिजली चो सम्बन्ध ने असन्धारणा बन्दी सेे की ए सब ले आमचोे संस्कृति के नुकसान पहुचे दे ए सब बात ने तुमचो काए विचार आए। तुमचो हिसाब ले बस्तर और दूसर आदिवासी अंचल ने अधोसंरचना चो विकास कसन होउ सके दे।
माननीय मुख्यमंत्री जी का जवाब
– क्षीर सागर जी।
– वास्तव में हमारे आदिवासी समाज ने प्रकृति से तालमेल बिठाते हुए जीना सीखा है।
– आदिवासी भाई-बहनों के पास एक परंपरागत कौशल होता है कि वे अपने सुख-दुःख और रोजमर्रा की जिंदगी में किस तरह से अपना काम निकालें। इसलिए उनकी आवश्यकताएं सीमित होती हैं।
– ये आदर्श स्थिति उस समय की होती है कि जब उनके जीवन में कोई भी बाहरी तत्व का प्रवेश नहीं हो पाए। लेकिन आज दुनिया एक विश्व गांव की तरह हो गई है। दुनिया में होने वाले बदलावों का असर घने जंगलों में अपने जीवन में रमे आदिवासी समाज पर भी पड़ता है।
– जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग जैसी चुनौतियों का असर आदिवासी अंचलों में रहन-सहन से लेकर आजीविका तक पड़ा है। ऐसी स्थिति में आदिवासी समाज को अपने हाल पर नहीं छोड़ा जा सकता बल्कि उनकी रुचि, संस्कार, कौशल, परंपरा से मेल खाते हुए ऐसी सुविधाएं देना सरकार की जिम्मेदारी है, जिससे वे बदलावों का मुकाबला कर सकें।
– इसलिए वहां की परिस्थितियों से मेल खाती हुई सड़कों, भवनों, बिजली, पानी, चिकित्सा, पोषण, शिक्षा, परिवहन, संस्कृति और आजीविका का संरक्षण, बाहरी प्रभावों से प्रभावित हुए रोजगार के साधनों का नए सिरे से विकास आदि ऐसे जरूरी काम हैं, जिन्हें किया जाना अत्यावश्यक है।
– मुझे खुशी है कि मनरेगा से लेकर वनोपज के कारोबार तक, कौशल उन्नयन से लेकर परंपरागत रोजगार तक, स्वास्थ्य के लिए चेतना से लेकर जीवन स्तर में सुधार तक हर दिशा में आदिवासी समाज के कदम आगे बढ़ रहे हैं।
– हमारी सरकार की योजनाओं में आदिवासी समाज की सशक्त भागीदारी साफ दिखाई पड़ रही है।
– हमने बहुत सोच विचार के सड़कों के विकास की योजना बनाई है।
– प्रदेश में 16 हजार करोड़ रुपए की लागत से सड़कों का निर्माण किया जा रहा है, जिससे हमारे आदिवासी अंचलों को सैकड़ों ऐसी सड़कें मिलेंगी, जिनका इंतजार वे दशकों से कर रहे थे।
– नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों में संपर्क बहाल करने के लिए हम
1 हजार 637 करोड़ रुपए की लागत से सड़कें बना रहे हैं।
– आदिवासी अंचलों में बिजली की सुविधा देने के लिए सबसे बड़ा काम अति उच्च दाब के चार वृहद उपकेन्द्र का निर्माण पूरा कर लिया गया है।
– नारायणपुर, जगदलपुर, बीजापुर और सूरजपुर जिले के उदयपुर में ये उपकेन्द्र प्रारंभ हो जाने से बिजली आपूर्ति सुचारू हो गई है।
– इसके अलावा विगत ढाई वर्षों में आदिवासी अंचलों में सौर ऊर्जा से संचालित 74 हजार सिंचाई पम्प, 44 हजार से अधिक घरों में रोशनी और लगभग 4 हजार सोलर पेयजल पम्पों की स्थापना की गई है, जो अपने आप में कीर्तिमान है।
– इस तरह आदिवासी अंचलों में जनहितकारी अधोसंरचना के विकास पर बल दिया गया है।
एंकर
8 किशन लाल
– माननीय मुख्यमंत्री जी, जय जोहार। मेरा नाम किशन लाल है और मैं छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले से बोल रहा हूं। मेरा सवाल यह है कि आदिवासी अंचलों की वनोपजों के प्रसंस्करण को लेकर आपकी क्या राय हैं और इस काम को किस तरह से आगे बढ़ाना चाहते हैं? कृपया इस संबंध में जानकारी देने का कष्ट करें, जिससे कि हमारे युवा साथी इसे समझ सकें और अपना भविष्य बना सकें।
माननीय मुख्यमंत्री जी का जवाब
– जय जोहार, किशन लाल जी, आपने बहुत अच्छा सवाल किया। हमारी सरकार बनते ही, सबसे पहले हमने बस्तर जिले के लोहंडीगुड़ा में एक बड़े उद्योग की स्थापना के नाम से ली गई आदिवादियों की जमीन वापसी की घोषणा की। उसके बाद जब राहुल गांधी जी आए, तब उनके हाथों से 10 गांवों के 1 हजार 707 किसानों को 4 हजार 200 एकड़ जमीन के दस्तावेज प्रदान किए गए थे। इस तरह आदिवासियों को न्याय दिलाने का सिलसिला शुरू हो गया था। कोण्डागांव में मक्का प्रोसेसिंग इकाई का शिलान्यास किया गया। इस तरह प्रदेश में कृषि उपज और वन उपज की प्रोसेसिंग हेतु विभिन्न स्थानों में इकाइयां स्थापित करने की दिशा में काम शुरू हुआ।
– अब प्रदेश में 146 विकासखण्डों में से 110 विकासखण्डों में फूडपार्क स्थापित करने हेतु भूमि का चिन्हांकन तथा अनेक स्थानों पर भूमि हस्तांतरण भी किया जा चुका है।
– छत्तीसगढ़ में अभी 139 वनधन विकास केन्द्र स्थापित हो चुके हैं, जिनमें से 50 केन्द्रों में वनोपजों का प्रसंस्करण भी हो रहा है। इस काम में लगभग 18 हजार लोगों को रोजगार मिला है।
– छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा ‘छत्तीसगढ़ हर्बल ब्रांड’ के नाम से 121 उत्पादों की मार्केटिंग की जा रही है।
– भारत सरकार की संस्था ट्रायफेड द्वारा दो दिन पहले ही अर्थात 6 अगस्त को छत्तीसगढ़ को लघु वनोपज की खरीदी तथा इससे संबंधित अन्य व्यवस्थाओं के लिए 11 राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए गए हैं। मैं बताना चाहूंगा कि छत्तीसगढ़ प्रथम रहा है तो उन वर्गों में द्वितीय स्थान प्राप्त करने वाले राज्यों की उपलब्धियां काफी कम है। जैसे हम 52 प्रकार की लघु वनोपज खरीदते हैं तो दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र मात्र 21। हमने 1 हजार 173 करोड़ रुपए की लघु वनोपज खरीदा तो दूसरे स्थान पर उड़ीसा ने मात्र 30 करोड़ रुपए की। मूल्य संवर्धन कर उत्पादों की हमारी बिक्री राशि 4.24 करोड़ रुपए है तो दूसरे स्थान पर मणिपुर की मात्र
1.98 करोड़ रुपए है। केन्द्र की राशि के उपयोग के मामले में छत्तीसगढ़ की राशि 180.51 करोड़ रुपए है तो दूसरे स्थान पर आंध्रप्रदेश की मात्र 4.51 करोड़ रुपए है। यह हमारे आदिवासी अंचलों के साथ पूरे प्रदेश के लिए भी गौरव का विषय है।
– दुर्ग जिले में 78 करोड़ रुपए से अधिक लागत पर एक वृहद प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित की जा रही है।
– मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि राज्य में वनोपज आधारित उद्योगों की स्थापना को बढ़ावा देने के लिए वनांचल उद्योग पैकेज लागू किया गया है।
– वनोपज के अलावा अन्य काम भी हो रहे हैं। उदाहरण के लिए दंतेवाड़ा में रेडिमेड कपड़ों का ‘ब्रांड डेनेक्स’ एक सफल प्रयोग साबित हुआ है। नवचेतना बेकरी भी काफी सफल हो रही है। ऐसे कामों से सैकड़ों स्थानीय युवाओं को रोजगार मिला है।
– माननीय मुख्यमंत्री जी, आपके ड्रीम प्रोजेक्ट राम-वन-गमन पथ को लेकर भी आदिवासी अंचलों में बड़ी जिज्ञासा है।
– एक सवाल इस विषय पर भी लेते हैं।
9 लाल साय- जिला कोरिया
– आदरणीय मुख्यमंत्री जी, नमस्कार। मैं लाल साय बैगा ग्राम देवगढ़ जिला कोरिया से बोल रहा हूं। मन में एक सवाल है। माननीय मुख्यमंत्री जी, राम वन गमन पर्यटन परिपथ के बारे में कहा गया है कि यह कोरिया से सुकमा तक विकास के रास्ते खोलेगा। कृपया इस संबंध में आपके क्या विचार हैं और क्या योजना है? इस बारे में अपने विचार प्रकट करेंगे, ताकि हम श्रोताओं को सही जानकारी मिल सके। धन्यवाद।
माननीय मुख्यमंत्री जी का जवाब
– लाल साय जी। जय सियाराम।
– भारतीय अध्यात्म और संस्कृति में भगवान राम की महिमा को बहुत आस्था के साथ देखा जाता है।
– हमारे लिए यह बहुत गर्व का विषय है कि भगवान राम का अवतार जिस काम के लिए हुआ था, उन प्रसंगों की रचना छत्तीसगढ़ में हुई।
– भगवान राम को देवता के रूप में नहीं बल्कि मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में जाना जाता है।
– अयोध्या तो उनके राज-काज की जगह थी, लेकिन हमारे छत्तीसगढ़ का आदिवासी अंचल उनके मानवीय गुणों की सुगंध से महकता है। वास्तव में भगवान राम छत्तीसगढ़ में कौशल्या के राम और ‘वनवासी राम’ के रूप में प्रकट होते हैं।
– यह अद्भुत संयोग है कि भगवान राम का छत्तीसगढ़ में प्रवेश, संचरण और प्रस्थान सघन आदिवासी अंचल में ही हुआ।
– कोरिया जिले के सीतामढ़ी हरचौका में प्रवेश और सुकमा जिले के अंतिम स्थान कोंटा तक उनकी पदयात्रा।
– हमारे प्रदेश के कण-कण में राम, काम की शुरूआत में राम, जागते-सोते समय राम, शब्द-शब्द में राम, गिनती से लेकर सुख-दुःख में राम के ऐसे युगों-युगों से समाए रहने का कारण ही लोक आस्था में राम का बसा होना है।
– आस्था केन्द्रों को जोड़ते हुए पर्यटन का विकास हमारे समाज की विशेषता रही है।
– इस तरह आज के जमाने में एक बार फिर राम के रास्ते पर चलते हुए अगर हम 2 हजार 260 किलोमीटर सड़कों का निर्माण करते हैं तो इससे पूरे रास्ते में विकास के दीये जल उठेंगे।
– आस्था के साथ जुड़ी सड़कें, सुविधाओं के साथ आजीविका के नए-नए साधन भी आएंगे और यह पूरा परिपथ पावन भावनाओं के कारण स्थानीय संस्कृति का सम्मान करते हुए एक दूसरे से रिश्ते बनाते चलेगा।
– यह समरसता और सौहार्द्र के साथ वनवासी राम के प्रति आस्था का परिपथ बनेगा, जो नदियों, नालों, झरनों, जलप्रपातों, खूबसूरत जंगलों से गुजरते हुए सैकड़ों पर्यटन स्थलों का उद्धार करेगा।
10 प्रीति बारिक, बसना, महासमुन्द
– माननीय मुख्यमंत्री जी, मैं प्रीति बारिक, बसना ब्लाक, जिला महासमुन्द से बोल रही हूं। आकांक्षी जिलों की रैंकिंग में छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल जिलों की क्या स्थिति है? कृपया इस संबंध में बताइए।
माननीय मुख्यमंत्री जी का जवाब
– प्रीति जी, आपने जो सवाल किया है, उसका भी निराकरण कर देता हूं।
– नीति आयोग द्वारा देश के सबसे कम विकसित 115 आदिवासी बहुल जिलों को आकांक्षी जिलों में शामिल किया गया है। इन जिलों में विकास की रणनीति योजनाओं, कार्यक्रमों, उनके क्रियान्वयन और परिणाम की नियमित रूप से समीक्षा की जाती है।
– मुझे यह कहते हुए बहुत खुशी होती है कि हमारे प्रदेश के 10 आकांक्षी जिलों को मई 2019 से लेकर अभी तक किसी न किसी क्षेत्र में पहले से लेकर 11वें स्थान तक में आने का सम्मान मिला है।
– समग्र डेल्टा रैंकिंग में बीजापुर, कोण्डागांव, सुकमा और नारायणपुर जिले को तो अव्वल स्थान पर रहने का सम्मान भी मिला है।
– हाल ही में मलेरियामुक्त बस्तर अभियान की नीति आयोग तथा यूएनडीपी ने सराहना की है।
– इसके लिए मैं सभी आकांक्षी जिलों के निवासियों और प्रशासनिक अमले को साधुवाद देता हूं।
– एक अंतिम और सबसे जरूरी बात के साथ अपनी वाणी को विराम दूंगा।
– कोरोना की ‘तीसरी लहर’ को लेकर आप सभी को बहुत सावधान रहने की जरूरत है। हमने सरकारी स्तर पर बहुत से इंतजाम किए हैं। लेकिन मैं एक बार फिर आपसे अपील करता हूं कि पर्व-त्यौहार मनाते समय फिजिकल डेस्टिेंसिंग का पालन करें, मास्क का उपयोग करें, हाथ को साबुन-पानी से धोते रहें तथा टीका जरूर लगवाएं। खुद को बचाए रखना ही सबसे जरूरी उपाय है।
– श्रोताओं लोकवाणी का आगामी प्रसारण 12 सितम्बर, 2021 को होगा। जिसमें माननीय मुख्यमंत्री ‘‘जिला स्तर पर विशेष रणनीति से विकास की नई राह’’ विषय पर चर्चा करेंगे। आप इस विषय पर अपने विचार सुझाव और सवाल दिनांक 25, 26 और 27 अगस्त, 2021 को दिन में 3 बजे से 4 बजे के बीच फोन करके रिकार्ड करा सकते हैं। फोन नम्बर इस प्रकार हैं। 0771-2430501, 2430502, 2430503।