- वनमंडल के सभागार में प्रशिक्षण संपन्न
राजनांदगांव – छत्तीसगढ़ राज्य के वन क्षेत्रों में उपलब्ध सागौन वृक्षों को हानि पहुंचाने वाले कीटों, सागौन नियंत्रण एवं कंकाल कीटों द्वारा वृक्षों की वृद्धि को प्रभावित किया जाता है। वन क्षेत्रों में इनके नियंत्रण हेतु रासायनिक कीट नाशकों का दुष्प्रभाव एवं वृक्षारोपण एवं वनों में कीटनाशकों का प्रयोग असंभव होने से इनके रोकथाम एवं प्रबंधन के रूप में रासायनिक कीट नाशकों के स्थान पर जैविक नियंत्रण विधि अपनाई जा रही है।
इस संबंध में उष्ण कटिबंधीय वन अनुसंधान संस्थान जबलपुर के वन सुरक्षा प्रभाग से वैज्ञानिक श्रीमती शामिनी भोवने द्वारा वनमंडलाधिकारी श्री एन गुरूनाथन, उपवनमंडलाधिकारी की उपस्थिति में वनमंडल के सभागार में प्रशिक्षण दिया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में उपस्थित वन क्षेत्रपालों, उप वन क्षेत्रपालों एवं वन रक्षकों को सागौन के कीटों एवं उनके ट्रायकोकाईस द्वारा जैविक नियंत्रण विधि पर विस्तृत जानकारी दी गई। श्री रामभजन सिंह तकनीकी अधिकारी एवं श्री रामकिशोर महोबे प्रोजेक्ट असिस्टेंट टीएफआरआई जबलपुर द्वारा ट्रायकोकाईस को तैयार करने एवं वन क्षेत्रों में छोडऩे संबंधी प्रदर्शन किया गया। यह प्रशिक्षण केम्पा छत्तीसगढ़ द्वारा पोषित परियोजना के तहत दिया गया।
टीएफआरआई ट्रायकोकाई द्वारा कीट नियंत्रण –
गौरतलब है कि उष्ण कटिबंधीय वन अनुसंधान संस्थान जबलपुर द्वारा विकसित टीएफआरआई ट्रायकोकाई को एक अण्डा परजीवी कीट प्रजाति ट्रायको ग्रामा रावी को विकसित किया गया है। ट्रायकोकाई को सागौन प्रजाति के वृक्षों के पत्तों में कीट ग्रस्त शाखाओं में लगा दिया जाता है। ट्रायकोकाई में ट्रायको ग्रामा रावी परजीवी अण्डे अनुकूल परिस्थितियों में बाहर निकलकर नाशी कीटो के अण्डे में अपने अण्डे देकर उनके जीवन चक्र को समाप्त कर देते हैं तथा अपना जीवन चक्र शुरूकर देते है। इससे सागौन में लगने वाले कीट का नियंत्रण हो जाता है।