क्या है दिल्ली के सबसे बड़े रेड लाइट इलाके पर कोरोना लॉकडाउन का असर……

कोरोना संक्रमण की रफ्तार देखते हुए देश में ये लॉकडाउन का तीसरा चरण चल रहा है. इस दौरान दिल्ली के रेड लाइट एरिया जीबी रोड पर बंदी की दोहरी मार पड़ी है. दरअसल संक्रमण के डर से शेल्टर में रह रहे बच्चों को मां के पास भेज दिया गया है और इधर क्लाइंट न होने के कारण मांओं के पास बच्चों को खिलाने-खाने के भी पैसे नहीं.

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क्या है जीबी रोड
देश के चुनिंदा सबसे बड़े लाल-बत्ती इलाकों में से एक है जीबी रोड, जिसका पूरा नाम है Garstin Bastion Road. ये चमचमाती दिल्ली का दूसरा चेहरा है. यहां की तंग गलियां और पलस्तर झरती दीवारें अपना पुरानापन और दर्द खुद बयां करती हैं. लंबी-ऊंची बिल्डिंगें, जिन्हें दिन में देखते हुए लगता ही नहीं कि यहां कोई रहता भी होगा. इन्हीं बिल्डिंगों के पहले माले पर दिन में ऑटोमोबाइल की दुकानें सजती हैं और फिर रात में औरतों की. यहां पर बसे 78 वेश्यालयों में लगभग 2,225 औरतें रहती हैं. दिल्ली का सबसे बड़ा रेडलाइड एरिया माने जाने वाला ये इलाका भी अब कोरोना लॉकडाउन की मार से अछूता नहीं.

दलाल शहरों में अच्छे कामों का लालच दे उन्हें दिल्ली जैसे बड़े शहर लाते हैं और इस काम में धकेल देते हैं

क्या है मामला

अक्सर यहां वे औरतें मिलेंगी, जो किसी दूसरे प्रदेश के गांवों से आई होती हैं. गांवों में सक्रिय दलाल शहरों में अच्छे कामों का लालच दे उन्हें दिल्ली जैसे बड़े शहर लाते हैं और इस काम में धकेल देते हैं. अब वापस न लौट पाने को मजबूर औरतें यही काम करती रह जाती हैं. वेश्वृत्ति के दौरान वे चाहे-अनचाहे ही मां बन जाती हैं. ये बच्चे इस काम से दूर रह पढ़ाई-लिखाई सीख सकें, इसके लिए कई रेड लाइट एरिया में शेल्टर होम होते हैं. दिल्ली के जीबी रोड पर भी एक एनजीओ ऐसा ही शेल्टर होम SPID SMS Centre चलाता है. 70 बच्चों से बना ये होम फिलहाल कोरोना संक्रमण के डर से बंद है और बच्चे अपनी मांओं के पास भेजे जा चुके हैं.

कहां आ रही है दिक्कत
ये पहली बार है जब बच्चों और मांओं को साथ रहने का मौका मिला है. इन्हीं में से एक बच्ची है 13 साल की दुर्गा. लॉकडाउन से पहले वो अपनी मां से महीने में दो बार कुछेक मिनट के लिए मिलती रही होगी. यहां तक कि उसे अपनी मां के काम के बारे में भी कुछ नहीं पता. अब पिछले महीनेभर से वो अपनी मां के साथ रह रही है. दुर्गा की मां खुश तो है लेकिन इस खुशी की कीमत काफी बड़ी है. जैसा कि दुर्गा की मां कहती है- हमारे काम का इकलौता जरिया खत्म हो चुका है. अब मेरे पास बेटी तो है लेकिन खाने को पैसे नहीं.

नहीं है राशन या आधार कार्ड
पिछले ही महीने केंद्र सरकार ने गरीबों के लिए 1.17 लाख करोड़ रुपए के राहत पैकेज की घोषणा की लेकिन ये रेड लाइट की महिलाओं के किसी काम का नहीं. उनके पास सरकार की योजनाओं से जुड़ने के लिए आधार कार्ड या दूसरा कोई पहचान पत्र नहीं. इसी बात को देखते हुए Global Network of Sex Work Projects ने UNAIDS के साथ मिलकर 8 अप्रैल को दिए एक स्टेटमेंट में दुनियाभर के रेड लाइट इलाकों में रह रही इन महिलाओं के हालात बताए और कोरोना के दौर में उनके ह्यूमन राइट्स की मांग की.

शेल्टर होम फिलहाल कोरोना संक्रमण के डर से बंद है और बच्चे अपनी मांओं के पास भेजे जा चुके हैं

किराया नहीं देंगी तो कहां जाएंगी
हर क्लाइंट पर 50 से लेकर 1000 रुपए तक कमा पाने वाली इस महिलाओं के पास सेविंग्स के नाम पर कुछ नहीं. अब लॉकडाउन में चूंकि कोई क्लाइंट नहीं आता इसलिए रही-सही पूंजी भी खत्म हो चुकी है. ऐसे में फिलहाल ये औरतें लोकल एनजीओ की मदद पर निर्भर हैं. एक समस्या ये भी है कि किराए के छोटे-छोटे कमरों में रहती ये औरतें जब किराया भी नहीं दे सकेंगी तो कहां जाएंगी.

पहली बार मिला बच्चों का साथ
वैसे तमाम मुश्किल हालातों के पास भी इन महिलाओं को सुकून है कि पहली बार उन्हें अपने बच्चों के साथ रहने का मौका मिला है. वे अपने बच्चों के साथ टीवी देखती हैं, उनके साथ लूडो खेलती हैं. बच्चे भी सालों बाद पहली बार खुलकर अपनी तकलीफें बता रहे हैं. वे बताते हैं कि शेल्टर होम में वे क्या करते हैं, कैसे रहते हैं और कौन से बच्चे उनके दोस्त हैं. दुर्गा की मां दिन में दो बार PID SMS Centre के वॉलंटिरर्स से मिलती हैं, जो उन्हें दूध, खाना और दूसरी जरूरी चीजें दिलवाने में मदद करते हैं. इस बीच दुर्गा कमरे में अपनी मां का इंतजार करती होती है. 13 साल की इस बच्ची को अंदाजा भी नहीं है कि उसे पालने के लिए मां कितनी जद्दोजहद कर रही है.