राजनांदगांव : किसान को फसलों में कीट बीमारियों से सुरक्षा के संबंध में दी गई समसामयिक सलाह…

राजनांदगांव 17 सितम्बर 2024। खरीफ में जिले में इस बार पर्याप्त वर्षा (दस वर्ष की तुलना में 130.7 मिमी) होने के कारण धान की फसल की अच्छी पैदावार होने की संभावना है। कुछ क्षेत्रों में बेमौसम वर्षा एवं खराब मौसम होने के कारण कीट एवं बीमारियों के प्रकोप देखने को मिल रहे हैं। 

जिले में धान फसल का रकबा 174147 हेक्टेयर है। कृषि विभाग द्वारा वर्तमान मौसम की स्थिति को देखते हुए कृषकों को विभिन्न कीट एवं बीमारियों के निरीक्षण एवं रोकथाम नियंत्रण करने की सलाह दी गई है। बारिश के बाद तेज धूप के बाद वाली मौसम में कम अवधि में पकने वाली किस्मों में विभिन्न तरह के कीट एवं बीमारियां देखने को मिल रही है। 


धान का झुलसा रोग (ब्लास्ट)- वर्तमान ब्लास्ट रोग से धान फसल में अधिक प्रकोप होने की शिकायत प्राप्त हुई है। इस रोग के कारण पौधे के निचली पत्तियों को आंख या नाव आकार के धब्बे बनते है। वातावरण में अधिक नमी तथा बादलों वाला मौसम रोग फैलाने में सहायक होते है, यह रोग पत्तियों के अलावा धान की बालियों को भी प्रभावित करता है, जिससे बालियों की गर्दन पर भूरे काले रंग का संक्रमण होने से बाली कमजोर एवं टूटने लगती है। 

इसके रोकथाम के लिए ट्रायसायकलाजोल 75 प्रतिशत डब्ल्यूपी को 200-300 ग्राम या आइसोप्रोथियोलेन 40 प्रतिशत ईसी को 750 मिली में से किसी एक दवा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
शीथ ब्लाइट- यह एक फफूंद जनित रोग है। जिस खेत में अधिक दिनों तक लगातार पानी जमा रहने से, नमी युक्त मौसम व मेड़ों पर उगे घास से धान में फैलती है। धीरे-धीरे बीमारी पूरे फसल में फैल जाती है। इस रोग के कारण तने व पत्तियों पर लंबे डंडाकार भूरे रंग के धब्बे बनते है, जिसके कारण बालियों के दाने पोचे एवं काले रंग के हो जाते है। 

शीथ ब्लाइट का प्रकोप सबसे पहले धान के तने में होता है, तथा पूरे पौधे में फैल जाते है। इसके नियंत्रण के लिए कृषक खेत से अतिरिक्त पानी का निकासी करें तथा हेक्साकोनाजोल 5 प्रतिशत ईसी को 1000 मिली या प्रोफिकोनाजोल 25 प्रतिशत ईसी को 750 मि.ली. या प्रोफिकोनाजोल 10.7 प्रतिशत+ ट्रायसायकलाजोल 32.2 प्रतिशत सीई को  500 मिली में किसी एक का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट- यह एक जीवाणु जनित रोग है। यह रोग धान में व्यापक रूप से देखने को मिल रहा है। 

इस रोग में धान फसल के पत्ते पीले या पैरा के रंग के एवं एक या दोनों किनारों से ऊपर या नीचे बढ़ते है और अंत में सूख जाते है। अधिक प्रकोप होने पर पूरा का पूरा पौधा सूख जाता है। इस रोग के लक्षण प्रकट होने पर स्ट्रप्टोसाइक्लिन 200 ग्राम+कापरआक्सीक्लोराइड का 200 ग्राम या एग्रीमाईसिन 100 पीपीएम की 30 ग्राम+कापरआक्सीक्लोराइड 200 ग्राम का 200 लीटर पानी में घोल बनाकर 10 से 12 दिन के अंतराल में 2 से 3 बार प्रति एकड़ छिड़काव करें।

तना छेदक- इस कीट का इल्ली अवस्था फसल को नुकसान पहुंचाती हैं। यह कीट फसल के कंसा एवं कभोट अवस्था में तने के अंदर घुस कर खाती है, जिजससे क्रमश: सूखा तना व सूखी बालियां बनती है, जो खीचने पर आसानी से बाहर निकल जाती है। इसे नष्ट करने हेतु करटाप हाईड्रोक्लोराईड 4 प्रतिशत जी 2.0-2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर या कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत सीजी का 2.5-3.0 किग्रा प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें।

पत्ती मोड़क- इसे चितरी कीट कहा जाता है, इस कीट की इल्ली अवस्था फसल को नुकसान पहुंचाती है। यह कीट पत्तियों के दोनों किनारों को आपस में जोड़कर पत्तियों का हरा पदार्थ खुरचकर खाती है, जिससे पत्तियों पर सफेद धारियां बन जाती है। इसे नष्ट करने हेतु करटाप हाईड्रोक्लोराईड 4 प्रतिशत जी 2.0-2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर या क्लोरपाइरीफॉस 1.5 प्रतिशत डीपी का 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें।

भूरा माहो- वर्तमान में कही-कही पर गभोट एवं बाली अवस्था में भूरा माहो का प्रकोप दिखने को मिल रहा है। यह धान की बहुत ही नुकसान दायक कीट है, जो धान के तने से रस चूसकर बहुत तेजी से नुकसान पहुंचाती है। वातावरण में उसम होने के कारण भूरा माहो का प्रकोप बढ़ जाता है। ये        मध्यम से लंबी अवधि में पकने वाली किस्मों में अधिक नुकसान पहुंचाती है। भूरा माहो के प्रकोप वाले पौधें गोल घेरे में पीली या भूरे रंग के दिखाई देनी लगती है एवं सुख जाती हैं। 

यह कीट पानी के सतह के ऊपर पौधे से चिपककर रस चूसती है। भूरा माहो के नियंत्रण हेतु कृषक एजाडिरेक्टिन 0.03 प्रतिशत का 1000 मिली प्रति हेक्टेयर या इमिडाक्लोरोपिड 17.8 प्रतिशत एसएल को 125 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव फसल एवं मेड़ दोनों पर करें। किसानों से आग्रह है कि फसल का सतत निरीक्षण करते रहे एवं अनुशंसित मात्रा में ही दवाईयों का उपयोग करें।