राजनांदगांव : गोधन न्याय योजना के तहत बने वर्मी कम्पोस्ट से अब लहलहायेगी फसल….

जिले में 74 हजार 349 क्ंिवटल वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन

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जैविक खेती की दिशा में बढ़ते कदम, किफायती वर्मी कम्पोस्ट जनसामान्य के लिए उपलब्ध

महिलाओं के स्वावलंबन, आत्मविश्वास और सशक्तिकरण की दस्तक


राजनांदगांव शासन की किसान हितैषी गोधन न्याय योजना के तहत बने वर्मी कम्पोस्ट से अब फसल लहलहायेगी। गोधन न्याय योजना ग्रामीण क्षेत्रों में आमूलचूल परिवर्तन ला रही है। यह दस्तक है स्वावलंबन, आत्मविश्वास और सशक्तिकरण की। यह योजना गौपालकों एवं समूह की महिलाओं की न केवल आर्थिक स्थिति मजबूत कर रही है, बल्कि सामूहिक चेतना भी ला रही है। शासन की मंशानुसार जिले में जैविक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में हरसंभव कार्य किया जा रहा है।


कलेक्टर श्री तारन प्रकाश सिन्हा के निर्देश पर जिले में वर्मी कम्पोस्ट निर्माण कार्य में गति आई है। अब तक जिले में 74 हजार 349 क्ंिवटल वर्मी कम्पोस्ट के निर्माण किया गया है। जिले में कुल 661325.9276 क्ंिवटल गोबर की खरीदी की गई है। जिसमें से 50277.16 क्ंिवटल वर्मी कम्पोस्ट तथा 24072.43 क्ंिवटल सुपर कम्पोस्ट का निर्माण किया गया है। अब तक 40570.31 क्ंिवटल वर्मी कम्पोस्ट तथा 2873.38 क्ंिवटल सुपर कम्पोस्ट का विक्रय किया गया है।

जिला पंचायत सीईओ श्री लोकेश चंद्राकर के मार्गदर्शन में सभी जनपद सीईओ एवं उनकी टीम वर्मी कम्पोस्ट निर्माण के लिए निरंतर कार्य कर रहे हैं और समूह की महिलाओं को वर्मी कम्पोस्ट निर्माण करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। सभी विकासखंडों में वर्मी कम्पोस्ट विक्रय के लिए विक्रय केन्द्र खोले गए हैं। किसान एवं नागरिक इन विक्रय केन्द्रों से वर्मी कम्पोस्ट खरीद सकते हैं। किसानों के साथ ही शहर में किचन गार्डन के लिए भी वर्मी कम्पोस्ट उपयुक्त है। जैविक खेती के उत्पाद स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छे होते हैं। वर्मी कम्पोस्ट किसानों के लिए किफायती है। रासायनिक उर्वरक की तुलना में वर्मी कम्पोस्ट मृदा के लिए अच्छा होता है। वर्मी कम्पोस्ट अनिवार्य पोषक तत्वों से परिपूर्ण होता है तथा पौधों की बढ़ोतरी में इसका अच्छा प्रभाव पड़ता है। इसे आसानी से उपयोग में लाया जा सकता है।

यह मृदा की संरचना तथा भूमि के जल धारण की क्षमता बढ़ाता है एवं मृदा क्षरण को रोकता है। वर्मी कम्पोस्ट में विभिन्न प्रकार के लाभकारी सूक्ष्मजीव पाए जाते हैं। भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि करने के साथ ही फसल उत्पादन में वृद्धि, सिंचाई अंतराल में वृद्धि करता है।