राजनांदगांव: किसानों को समसामयिक सलाह धान के 10 वर्ष की भीतर वाली किस्मों का उपयोग है फायदेमंद और क्या है महत्वपूर्ण जानिए…

राजनांदगांव। कृषि विभाग के अधिकारियों ने जिले के किसानों को अच्छी फसल के लिए समसामयिक सलाह दी है। अधिकारियों ने कहा कि वर्तमान में जिले के सभी विकासखण्डों में मानसून की  दस्तक के साथ खेतों  की तैयारी,  धान फसल की बोनी व रोपाई का कार्य प्रारम्भ हो चुका है। मौसम विभाग द्वारा इस वर्ष  बेहतर वर्षा होने की संभावना जताई गयी है, जो कि जिले के वर्षा आश्रित क्षेत्रों में फसलों के अच्छे उत्पादन के लिए एक सुखद संकेत  है। जिले के किसानों को उर्वरक एवं प्रमाणित उन्नत बीज की तत्काल उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए जिले के सभी विकास खंडों की सेवा सहकारी समितियों में उर्वरकों एवं बीजों  का पर्याप्त मात्रा का भण्डारण किया जा चुका है। किसानों द्वारा  लगातार समितियों के माध्यम से बीजों का उठाव भी किया जा रहा है।

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उन्नत बीज है तकनीकी खेती का आधार-


उच्च गंवात्ता के प्रमाणित बीज जिसमें अच्छी गुणवत्ता, उच्च अंकुरण प्रतिशत एवं स्थानीय परिस्थितियों में अच्छा प्रदर्शन करने की क्षमता वाले प्रतिरोधक बीजों के चयन से ही फसलों के विपुल उत्पादन की नीव रखी जा सकती है। वर्तमान में विभाग द्वारा जिले में किसानों की रूचि एवं क्षेत्र की परिस्थितियों के अनुकूल धान की  अलग-अलग अवधि एवं उत्पादन क्षमता वाले 18 किस्मों के बीजों के साथ ही हाईब्रिड व सुगंधित बीजों का भण्डारण किया गया है। जिसमें एमटीयू-1010, महामाया, बीपीटी-5204, पूर्णिमा, एमटीयू-1001, एमटीयू-7029 (स्वर्णा), आईआर-64, आईआर-64 (डीआरआर-42) बम्लेश्वरी, राजेश्वरी, पीकेवी-एचएमटी पूसा सुगंधित, महेश्वरी, एनडीआर-8002 कर्मा मासुरी, स्वर्णा सब-1, चन्द्रहासिनी, इन्द्राबारानी, आरवी-बीआईओ-26, सहभागी, हाईब्रिड किस्में शामिल हैं।

किसान भाईयों के लिए 10 वर्षो के अंदर के किस्मों का उपयोग है फायदेमंद-


जिले में किसानों द्वारा धान की  प्रचलित किस्में एमटीयू-1010, महामाया, जैसी किस्मों का उपयोग लम्बे समय से किया जाता रहा है। ये किस्में अच्छे उत्पादन के साथ ही स्थानीय जलवायु के अनुकूल होने के कारण किसानों के बीच लोकप्रिय है। परन्तु ये किस्में 10 वर्षो से अधिक अवधि वाले किस्मों के रूप में सूचीबद्ध है। शोध के अनुसार एक ही पारिस्थिकीय  में लम्बे समय से एक ही किस्मों के बीजों का उत्पादन किये जाने से उन किस्मों में अपनी ओज एवं गुण धर्मो के विपरीत प्रदर्शन करने की संभावना बढ़ जाती है। जिसके कारण फसलों में कीड़े एवं बीमारियों से अधिक प्रभावित होने के साथ ही उत्पादन में गिरावट देखी गई है।
किसान इन किस्मों के विकल्प के रूप में 10 वर्षो के अन्दर की किस्मों का  उपयोग कर बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। जैसे महामाया के विकल्प के रूप में राजेश्वरी तथा एमटीयू-1010 के विकल्प के रूप में समलेश्वरी किस्मों का उपयोग किया जा सकता है। उक्त दोनों किस्में असिंचित माध्यम तथा निचली भूमियों के साथ ही सिंचित क्षेत्रों के लिए भी सर्वोत्तम मानी जाती हैं। धान की राजेश्वरी किस्म 120 से 125 दिन की फसल अवधि, अर्ध बौनी, माध्यम पतला दाना, खाने में उपयुक्त होने के साथ ही गंगई निरोधक व झुलसा रोग सहनशील तथा 52 से 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देने वाली किस्म है। वहीं समलेश्वरी, हरूना 45 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देने वाली, 105 से 112 दिन फसल अवधि, अर्ध बौनी, मध्यम पतला दाना, गंगई निरोधक तथा झुलसा रोग सहनशील किस्म हैं। इसके अलावा धान की स्वर्णा किस्म का विकल्प स्वर्णा सब-1 है।


धान की स्वर्णा सब-1 किस्म की विशेषताएं-


स्वर्णा सब-1 140 से 150 दिन फसल अवधि वाले 50 से 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देने वाली किस्म हैं, जो सभी गुणों में स्वर्णा के समान हैं, परन्तु इसकी खासियत यह है कि यह कम पानी के अलावा पानी में डूबने की स्थिति में भी सहनशील व स्थिर उत्पादकता देने वाली किस्म है। इसके अलावा जिले में इस वर्ष सुगंधित धान के क्षेत्र विस्तार के लिए पीएस-5 किस्मों की व्यवस्था भी की गई है साथ ही, विष्णुभोग, बादशाहभोग तथा छत्तीसगढ़ सुगंधितधान बीजों का उपयोग फसल प्रदर्शन में किया जा रहा है।


इंदिरा एरोबिक-1 है सूखा प्रतिरोधी-


जिले के अधिकतर भागों का वर्षा आश्रित होना लगातार कृषकों के लिए सूखा एवं अकाल जैसी परिस्थितियां उत्पन्न करता है। इन क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से इंदिरा एरोबिक-1 जो कि सूखा सहनशील होने के साथ ही नेक ब्लास्ट तथा पर्ण सडऩ हेतु प्रतिरोधी है का भण्डारण भी विकासखंडों में किया गया है।