बेमेतरा : अब विकासखण्ड साजा की महिला स्व सहायता समूह खाद से कर रहे है कमाई

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन NRLM (बिहान) अन्तर्गत विकासखण्ड साजा जिला बेमेतरा के ग्राम पंचायत टिपनी के जय महामाया महिला  स्व सहायता समूह वर्मी कम्पोस्ट खाद का निर्माण कर रही है। साथ ही स्वसहायता समूह के सदस्य ग्रामीणों को पारंपरिक खाद बनाने का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। स्वसहायता समूह से जुड़े समूह का मानना है कि वर्मी कम्पोस्ट खाद रासायनिक खाद की अपेक्षा भूमि के लिए ज्यादा उपयोगी है। इससे भूमि को कोई नुकसान नहीं होता है बल्कि इसके उपयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। और फसल की पैदावार भी अच्छी होती है।

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                 ग्राम टिपनी के महामाया स्वसहायता समूह का विगत 7 माह से जैविक खाद बनाने का काम चल रहा है। जैविक खाद बनाने से पहले इसका प्रशिक्षण समूह के अध्यक्ष श्रीमती इन्द्ररानी देवांगन , सचिव श्रीमती क्रांती साहू एवं स्वसहायता समूह के सदस्यों को थानखम्हरिया के ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी श्री बलवंत सिन्हा द्वारा दिया गया था , जिसमें जनपद पंचायत के सहायक विकास विस्तार अधिकारी श्री एस.के. चौबे एवं पी.आर.पी. श्रीमती वीणा मार्कण्डेय उपस्थित थे । महामाया समूह से जुड़े 12 महिला वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाने के काम से जुड़े हुए हैं।


             अभी तक स्व सहायता समूह  द्वारा 14 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाकर 10 रू- प्रति किलो की दर से ग्राम पंचायत के ही किसानो 14000/-रू- में विक्रय किया जा चुका है तथा 4 ट्राली बेस्ट डी कम्पोस्ट खाद ( उपचारित गोबर खाद) की खरीदी 2500 प्रति ट्राली की दर से 10000/- रू- का ग्राम पंचायत टिपनी के ही किसानो ने ही स्वसहायता  समूह से कर कर लिये है। किसानो नेे  इन कम्पोस्ट खाद की खरीदी कर अपने खेतो, व बाड़ी में किए गए फसल उत्पादन में इस प्राकृतिक खाद का छिड़काव कर रही है जो बोये गये फसलो के लिए काफी लाभदायक साबित हो रहा है।

तैयार करने की विधि- महिला स्व सहायता समूह इस तरह बना रहे प्राकृतिक खाद

यह जैविक खाद पुरानी प्रचलित प्राकृतिक खाद ही है। इसे तैयार करने में मेहनत तो काफी ज्यादा लगती है लेकिन खाद बनने के बाद यह फसल व पौधों के लिए काफी लाभदायक होती है। समूह द्वारा कम्पोस्ट खाद्य बनाने के लिए 2 टैंक तैयार किए गए हैं। सबसे पहले बड़ी मात्रा में सूखी पत्तियों को टैंक में डाला जाता है। इन पत्तों को डेढ़ माह तक सड़ाया जाता है। फिर खाली बेड में नीम के पत्ते एवं अनाज के भूसा डालकर गोबर का घोल बनाकर छिड़काव किया जाता है और फिर निर्धारित मात्रा में केंचुआ खाद्य डाला जाता है जो सूखे पत्तों व गोबर के मिश्रण को खाकर उसे 30 से 45 दिन में वर्मी कम्पोस्ट खाद्य में तब्दील कर देते हैं। एक टैंक से एक बार में 10 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट प्राप्त होती है। खाद्य के निर्माण में प्रति किलो 4 रुपए का व्यय होता है जबकि इसकी बिक्री प्रति किलो रुपए 8 से 10 रुपए की दर से होती होता है और इस तरह समूह को प्रति किलो बिक्री में 4 से 6 रुपए का लाभ प्राप्त हो रहा है। वर्मी कम्पोस्ट निर्माण में समूह के सदस्यों को नियमित आजीविका प्राप्त हो रही है। वर्मी कम्पोस्ट में नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटेशियम का आदर्श प्रतिशत मौजूद होता है जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है जो कि पर्यावरण के लिए भी अच्छा है।